सिद्ध पीठ कालभैरव मंदिर उज्जैन में 1000 वर्ष पुराना अष्टदल कमल यंत्र गढ़कालिका, कालभैरव, शक्तिपीठ हरसिद्धि में साधना: मदिरा पान करना आज भी एक रहस्य -

विदेशी श्रद्धालुओं व भक्तों की भेंट से एक साल में 81 करोड़ -
 
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सिद्ध पीठ कालभैरव मंदिर उज्जैन में 1000 वर्ष पुराना अष्टदल कमल यंत्र गढ़कालिका, कालभैरव, शक्तिपीठ हरसिद्धि में साधना: मदिरा पान करना आज भी एक रहस्य -

पंकज पाराशर। विश्व में धर्मधानी उज्जैन मध्य प्रदेश को तंत्र की उर्वरा भूमि कहा जाता है। अनादिकाल से साधक यहां अमावस्या की रात व नवरात्र के दिनों में गुप्त साधना करते हैं। गढ़कालिका, कालभैरव, शक्तिपीठ हरसिद्धि को शक्ति साधना का केंद्र माना जाता है। कालभैरव मंदिर में मौजूद एक हजार साल पुराना अष्टदल कमल लिंगात्मक यंत्र इस बात को प्रमाणित करता है। पुरातत्व व धर्मशास्त्र के विद्वानों का कहना है कि पूर्वकालिक शासकों ने अवंतिका तीर्थ में तंत्र को संतुलित करने तथा नगर की आर्थिक समृद्धि व उन्नति के लिए यंत्रों की स्थापना की थी। इन यंत्रों में तंत्र क्रिया के द्वारा मंत्रों की शक्ति से ऊर्जा निहित करते रहना पड़ती है। इसके फलस्वरूप सकारात्मक ऊर्जा हमें धनधान्य, सुख समृद्धि तथा सुरक्षा के रूप में प्राप्त होती है। कालभैरव मंदिर अनादिकाल से आध्यात्मिक चेतना के लिए चर्चित रहा है। भगवान कालभैरव का मदिरा पान करना आज भी एक रहस्य होकर भक्तों की अगाध आस्था का केंद्र है। मंदिर की एक हजार वर्ष पुरानी वैभवशाली स्थापत्य शोधअध्येताओं को शोध करने के लिए प्रेरित करती है। जब भी इस मंदिर में आते हैं रहस्य का नया अध्याय सामने आता है। अष्टदल कमल लिंगात्मक चक्र इन्हीं में से एक हैं। शास्त्रोक्त है कि श्री यंत्र के अनेक चक्र होते हैं, इन्हीं में से यह लिंगात्मक चक्र है। यह यंत्र तंत्र साधना की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।

वर्तमान में यंत्र भग्न अवस्था में है, लेकिन इसकी मौजूदगी इस बात का प्रमाण है कि हजारों सालों से यह भूमि तंत्र साधना का केंद्र रही है। कालभैरव मंदिर के समीप स्थित ओखरेश्वर श्मशान में विक्रांत भैरव इस प्रकार की साधना का भाग कहा जा सकता है। उज्जैन तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है। यहां दक्षिणमुखी महाकाल, हरप्रकार की सिद्धि प्रदान करने वाली देवी हरसिद्धि, अष्ट महाभैरव तथा चक्रतीर्थ व ओखरेश्वर जागृत श्मशान कहे गए हैं। यह संपूर्ण क्षेत्र तंत्र साधना का स्थान है। इन क्षेत्रों में वैदिक तंत्र को संतुलित करने तथा विश्व कल्याण की भावना से प्राचीन यंत्र स्थापित हैं। भृगु संहिता में इसका उल्लेख मिलता है। कालभैरव मंदिर में स्थापित अष्टदल कमल यंत्र भी इन्हीं में से एक है। इसमें 8 पत्तियों का कमल रूपी आकार है तथा मध्य में लिंगात्मक स्तंभ का मुख दिखाई देता है। इस प्रकार के यंत्र पूर्ववर्ती शासकों ने तंत्र शक्ति को संतुलित रखने तथा आर्थिक समृद्धि व नगर की उन्नति को बनाए रखने के लिए स्थापित किए थे। इन यंत्रों को तंत्र क्रिया के द्वारा मंत्र की शक्ति से जागृत किया जाता था। इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव जनमानस को धन धान्य व सुख समृद्धि के रूप में प्राप्त होता था।