भगवान शिव का अलौकिक अवतार कुंडेश्वर मंदिर टीकमगढ़: हर साल चावल के दाने के बराबर बढ़ता शिवलिंग -

हर साल चावल के दाने के बराबर बढ़ता शिवलिंग -
 
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भगवान शिव का अलौकिक अवतार कुंडेश्वर मंदिर टीकमगढ़: हर साल चावल के दाने के बराबर बढ़ता शिवलिंग -

विश्व में 13 वें ज्योतिर्लिंग, ओखली में धान कूटते समय निकलने लगा था रक्त, देखा तो प्रकट हो गए महादेव -

पंकज पाराशर । वीर भूमि बुंदेलखंड, टीकमगढ़ जिले में कुण्डेश्वर स्थित शिवलिंग प्राचीन काल से ही लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा, समूचे उत्तर भारत में भगवान कुण्डेश्वर की विशेष मान्यता है। यहां पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने के आते है। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा सच्चे मन से मांगी गई हर कामना पूरी होती है। कहा जाता है कि द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा जंगल के मार्ग से आकर यहां पर बने कुण्ड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कालभैरव के रूप में दर्शन दिए थे और उनकी प्रार्थना पर ही कालांतर में भगवान यहां पर प्रकट हुए है।

कुण्डेश्वर मंदिर के बारे मे माना जाता है  कि संवत 1204 में यहां पर धंतीबाई नाम की एक महिला पहाड़ी पर रहती थी। पहाड़ी पर बनी ओखली में एक दिन वह धान कूट रही थी। उसी समय ओखली से रक्त निकलना शुरू हुआ तो वह घबरा गई। ओखली को अपनी पीतल की परात से ढक कर वह नीचे आई और लोगों को यह घटना बताई। लोगों ने तत्काल ही इसकी सूचना तत्कालीन महाराजा राजा मदन वर्मन को दी। राजा ने अपने सिपाहियों के साथ आकर इस स्थल का निरीक्षण किया तो यहां पर शिवलिंग दिखाई दिया। इसके बाद राजा वर्मन ने यहां पर पूरे दरवार की स्थापना कराई। यहां पर विराजे नंदी पर आज भी संवत 1204 अंकित है। 

मंदिर में विराजे भगवान शिव को लेकर किवदंती है कि आज भी राजकुमारी ऊषा यहां पर भगवान शिव को जल अर्पित करने के लिए आती है। श्रद्धालु बताते है कि आज भी पता नही चलता है कि आखिर सुबह सबसे पहले कौन आकर शिवलिंग पर जल चढ़ा जाता है। कुछ लोगों ने इसका पता लगाने का भी प्रयास किया लेकिन सफलता नही मिली।

लोग बताते है कि कुण्डेश्वर मंदिर में प्रत्येक वर्ष बढऩे वाले शिवलिंग की हकीकत पता करने सन 1937 में टीकमगढ़ रियासत के तत्कालीन महाराज वीर सिंह जू देव द्वितीय ने यहां पर खुदाई प्रारंभ कराई थी। उस समय खुदाई में हर तीन फीट पर एक जलहरी मिलती थी। ऐसी सात जलहरी महाराज को मिली। लेकिन शिवलिंग की पूरी गहराई तक नही 1204 पहुंच सके। इसके बाद भगवान ने उन्हें स्वप्र दिया और यह खुदाई बंद कराई गई।

टीकमगढ़ जिले में कुंडेश्वर धाम प्राचीन एवं सिद्ध स्थल है। कहा जाता है कि यह शिवलिंग प्रतिवर्ष चावल के दाने के आकार का बढ़ता है। इस मंदिर को लेकर आस्था ऐसी है कि इस स्थान को तेरहवें ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। भक्त इसे सभी ज्योतिर्लिंगों से अलग भी मानते हैं क्योंकि सभी शिवलिंग हर किसी की प्रतिष्ठा की गई है, जबकि कुण्डेश्वर महादेव स्वयं भू है। सदियों से कुण्डेश्वर महादेव के प्रति भक्तों की आस्था ऐसी ही बनी हुई है l