हनुमान जी विशाल आकार धारण कर विश्वास दिलाया

हनुमान जी विशाल आकार धारण कर विश्वास दिलाया

 | 
5

Photo by google

हनुमान जी विशाल आकार धारण कर विश्वास दिलाया

श्रीहनुमान जी ने माता सीता को अपना विशाल रूप क्यों दिखाया

मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥

कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥

अशोक वाटिका में हनुमान जी ने जब सीता माता को विश्वास दिला दिया कि वह प्रभु श्री राम के दूत हैं तो सीता माता के हृदय में उनके प्रति स्नेह पैदा हुआ, उनकी आंखों में आंसू आ गए। हनुमान जी ने प्रभु श्री राम का संदेश सुनाया तो जानकी जी उनकी ही याद करने लगीं और अपने शरीर की सुध बुध खो बैठीं।इस पर हनुमान जी ने उनसे कहा कि माता अब आप निराशा त्याग दें। अपने हृदय में धैर्य धारण करें और श्री रघुनाथ जी का स्मरण करें। उनकी प्रभुता को याद करते हुए निराशा का त्याग करें। राक्षसों के समूह श्री राम के अग्नि रूपी बाणों के सामने पतंगे के समान है। अब आप विश्वास कर लीजिए की सभी राक्षसों का संहार तय है।

हनुमान जी ने सीता माता से कहा कि यदि श्री रघुनाथ जी को आपके बारे में जानकारी मिल गयी होती तो वह विलंब नहीं करते। हे जानकी जी, राम जी के बाण तो सूर्य के समान हैं और जब वह तरकस से निकलेंगे तो अंधकार के समान राक्षस कहां टिक पाएंगे।हे माता, मैं आपको अभी यहां से ले जाने की शक्ति रखता हूं किंतु प्रभु ने इसके लिए आज्ञा नहीं दी है, उन्होंने तो बस आपका पता लगाने का ही आदेश दिया है। बस अब तो आप कुछ दिन और धैर्य रखिए, प्रभु श्री राम यहां पर वानरों के साथ आएंगे और राक्षसों को मारने के बाद ले जाएंगे.और प्रभु राम के ऐसा करने पर देवर्षि नारद जी आदि सभी ऋषि और मुनि तीनों लोकों में इस घटना का यशगान करेंगे।

हनुमान जी विशाल आकार धारण कर विश्वास दिलाया

हनुमान जी के सामान्य शरीर को देख कर सीता माता को संदेह हुआ और उन्होंने स्नेहवश पूछा कि हे पुत्र, क्या सभी बालक तुम्हारी तरह से इतने ही छोटे हैं क्योंकि राक्षस तो बहुत ही ताकतवर हैं, छोटे छोटे वानर उनका मुकाबला कैसे कर पाएंगे और कैसे उन्हें मार कर विजय प्राप्त करेंगे।इस पर हनुमान जी ने अपने विशाल शरीर के दर्शन कराए। उनका शरीर सोने के सुमेरु पर्वत की तरह विशालकाय हो गया जिसे देखते ही शत्रु भयभीत हो जाए। उनका विशाल शरीर देखने के बाद सीता जी के मन में विश्वास हो गया तो हनुमान जी फिर लघु रूप में आ गए।

आपकी दशा का वर्णन मैं श्री रामचन्द्र जी से विस्तारपूर्वक करूँगा और उन्हें शीघ्र ही लंकापुरी पर आक्रमण करने के लिये प्रेरित करूँगा। अब आप मुझे कोई ऐसी निशानी दे दें जिसे मैं श्री रामचन्द्र जी को देकर आपके जीवित होने का विश्वास दिला सकूँ और उनके अधीर हृदय को धैर्य बँधा सकूँ।”

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥

चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥

कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥

दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥

हनुमान के कहने पर सीता जी ने अपना चूड़ामणि खोलकर उन्हें देते हुये कहा, “यह चूड़ामणि तुम उन्हें दे देना। इसे देखते ही उन्हें मेरे साथ साथ मेरी माताजी और अयोध्यापति महाराज दशरथ का भी स्मरण हो आयेगा। वे इसे भली-भाँति पहचानते हैं।उन्हें मेरा कुशल समाचार देकर लक्ष्मण और वानरराज सुग्रीव को भी मेरी ओर से शुभकामनाएँ व्यक्त करना।

यहाँ मेरी जो दशा है और मेरे प्रति रावण तथा उसकी क्रूर दासियों का जो व्यवहार है, वह सब तुम अपनी आँखों से देख चुके हो, तुम समस्त विवरण रघुनाथ जी से कह देना।जानकी के ऐसा कहने पर दोनों हाथ जोड़ कर हनुमान उनसे विदा लेकर चल दिये।newse7live