Potato farming: आलू अब उगेगा हवा में,कमाई कितनी होगी और प्रोडेक्शन कैसे करें जाने

आलू अब उगेगा हवा में
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Potato farming: आलू अब उगेगा हवा में, कमाई कितनी होगी और प्रोडेक्शन कैसे करें जाने

Potato farming with Aeropin technique: आलू हर किसी का फेवरेट होता है और इससे हम कुछ भी टेस्टी डिश बना सकते हैं। आलू जमीन के अंदर उगता है ये तो हम सभी जानते है। इसके लिए किसान प्रॉपर बीज डालकर, जुताई, बुआई करता है और उसके बाद कहीं जाकर हमें आलू की पैदावार मिलती है।

अगर हम आपको एक ऐसी खबर बताएंगे जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। शायद ही आप जानते हों कि आलू की खेती हवा में भी हो सकती है। खेती-किसानी में नए तकनीक जोड़ने के कारण ये संभव हो पाया है। Aeroponic Potato Farming कैसे होता है चलिए जानते हैं।

Potato farming: आलू अब उगेगा हवा में, कमाई कितनी होगी और प्रोडेक्शन कैसे करें जाने

जानिए कैसे होगी हवा में आलू की खेती (Know how potato cultivation will be done in the air)

हरियाणा के करनाल जिले में आलू प्रोद्योगिकी में एरोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस तकनीक से खेती करने पर आलू की पैदावार 10 गुना बढ़ती है। सरकार भी इस तकनीक से खेती करने की मंजूरी किसानों को दे चुकी है। अब Aeroponic Potato Farming आपके लिए सुविधाजनक बन जाएगी।

Potato farming: आलू अब उगेगा हवा में, कमाई कितनी होगी और प्रोडेक्शन कैसे करें जाने

जानिए एरोपिन तकनीक से आलू की खेती कैसे की जाती है (Learn how to cultivate potatoes with Aeropin technique)

एरोपोनिक तकनीक में आलू में लटकती जड़ें ही उन्हें पोषक देती हैं। इसके बाद में मिट्टी और जमीन की जरूरत नहीं पड़ती है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि एरोपोनिक तकनीक से किसानों के लिए आलू की खेती करना आसान हो गया है। इससे किसान कम समय और लागत में आलू की ज्यादा पैदावार हासिल कर रहे हैं। आलू की ज्यादा पैदावार से किसानों को अधिक आमदनी होगी।

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एरोपोनिक फार्मिंग की जागरुकता के लिए बने कई सेंटर (Many centers made for awareness of aeroponic farming)

किसानों के बीच एरोपोनिक फार्मिंग की जागरुकता फैलाने के लिए कई सेंटर भी बनाए गए हैं। हरियाणा के करनाल जिले में आलू प्रौद्योगिक केंद्र में बताया गया है कि आलू के बीच के उत्पादन की क्षमता को 3-4 गुना बढ़ाया गया है। इस तकनीक से अन्य राज्यों के किसानों को भी लाभ पहुंच सकता है। इस तकनीक का उपयोग पत्तेदार सागा, स्ट्रॉबेरी, खीरे, टमाटर और अन्य जड़ी बूटियों के लिए भी किया जा सकता है। इसी अधिक जानकारी आपको एग्रीचल्चर के आधिकारिक वेबसाइट पर मिल सकती है।साभार - betul samachar