MP निकायों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दोनों प्रणाली होगी लागू! जनता ही चुनेगी महापौर,पार्षदों को मिल सकता है अध्यक्ष चुनने का अधिकार- सूत्र -

जनता ही चुनेगी महापौर,पार्षदों को मिल सकता है अध्यक्ष चुनने का अधिकार - 
 
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MP निकायों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दोनों प्रणाली होगी लागू! जनता ही चुनेगी महापौर,पार्षदों को मिल सकता है अध्यक्ष चुनने का अधिकार- सूत्र - 

भोपाल। मध्यप्रदेश में महापौर और नगर पालिका अध्यक्ष को लेकर बड़ी खबर सामने आई है. सूत्रों के हवाले से खबर है कि मध्यप्रदेश में जनता ही महापौर चुनेगी. शिवराज सरकार ने ऐसा फैसला लिया है. महापौर प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनने का फैसला है. संशोधित प्रस्ताव राजभवन भेजा जाएगा।

इसके अलावा नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्ष पद को लेकर असमंजस बरकरार है. नगर पालिका, नगर परिषद अध्यक्ष चुनने का अधिकार पार्षदों को दिया जा सकता है. आज-कल तक स्थिति साफ हो जाएगी. इस तरह देखा जाए तो निकायों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दोनों प्रणाली लागू होंगी।

ओबीसी एससी एसटी एकता मंच के अध्यक्ष लोकेंद्र गुर्जर ने कहा कि मप्र में ओबीसी वर्ग को 30 प्रतिशत नुकसान हुआ है. नए आरक्षण से ओबीसी वर्ग को नुकसान हुआ है. आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा के कारण नुकसान हुआ है. जनसंख्या के आधार पर एससी-एससी को आरक्षण मिला है. एससी-एसटी तर्ज पर ओबीसी को भी आबादी के अनुसार आरक्षण मिले।

इससे पहले अध्यादेश राजभवन भेजने की सूचना पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने को लेकर अभी तक कोई अध्यादेश राजभवन नहीं भेजा गया है. इस तरह मप्र में कमलनाथ फार्मूले को लेकर बीजेपी में असमंजस बरकरार है. नगरीय निकाय चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने को लेकर बीजेपी में मंथन जारी है. बीजेपी निकाय चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने की पक्षधर है. लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं हो सका है. कमलनाथ सरकार ने निकाय चुनाव का फार्मूला बदला था।

कमलनाथ सरकार ने नगरीय निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का फैसला लिया था. वर्तमान में कमलनाथ सरकार का फार्मूला लागू है. जिस कारण महापौर औऱ अध्यक्षों को पार्षद चुनते हैं. लेकिन अब शिवराज सरकार निकाय चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने के मूड में हैं।

बता दें कि पहले मेयर और पार्षद के लिए अलग-अलग वोटिंग होती थी, लेकिन कांग्रेस ने इस व्यवस्था को बदल दिया था. विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने इसका खूब विरोध किया, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल ने संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए अध्यादेश और फिर विधेयक की अनुमति दे दी थी। साभार लल्लू राम।