REPORT : MP में कर्ज के बोझ तले दबी योजनाएं, अब विभागों की योजना भी एनपीए की लिस्ट में शामिल, पढ़िए ये रिपोर्ट

 MP में कर्ज के बोझ तले दबी योजनाएं
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MP में कर्ज के बोझ तले दबी योजनाएं, अब विभागों की योजना भी एनपीए की लिस्ट में शामिल, पढ़िए ये रिपोर्ट

अजय शर्मा,भोपाल। मध्यप्रदेश में बैंक ही नहीं बल्कि सरकारी विभागों में चल रही योजनाएं भी एनपीए की लिस्ट में शुमार है. हालात यह है कि साल 2022 मार्च तक 58 हजार करोड़ रुपए एनपीए यानी की डूबत खाते में पहुंची है. यही स्थिति रही तो आने वाले 5 सालों के अंदर सरकार का दिवाला निकल जाएगा. क्योंकि एक तरफ सरकार विकास के लिए लगातार कर्ज ले रही है. वहीं सरकारी योजनाओं के तहत दिया गया फंड एनपीए (नान परफार्मिंग एसेट) की श्रेणी में पहुंच रहा है. आखिर मध्य प्रदेश में किन विभाग और बैकिंग सेक्टर में कितने प्रतिशत हुआ एनपीए देखिए लल्लूराम डॉट कॉम की एक्सलूसिव रिपोर्ट.

आंकड़े बताते हैं हकीकत

मध्यप्रदेश की बैकिंग अर्थव्यवस्था को लेकर पब्लिक, प्राइवेट, ग्रामीण, सहकारिता और छोटे फाइनेंस बैंकों ने एनपीए की लिस्ट जारी की है. जिसमें खुलासा हुआ है कि मध्य प्रदेश में लगातार एनपीए बढ़ता जा रहा है. साल 2022 की रिपोर्ट बताती है कि 3 लाख 96 हजार करोड़ रुपए का बैकों ने सरकारी और निजी सेक्टर को लोन दिया, लेकिन रिकवरी के नाम पर चूना लगाया गया. 3 लाख 96 हजार करोड़ रुपए में से 3 लाख 60 हजार करोड़़ रुपए ही बैकों की रिकवरी हुई है. 36 हजार करोड़ रुपए लोन लेने वाले ने चुकाए ही नहीं है. यही वजह है कि 9 प्रतिशत से अधिक बैंकों का एनपीए बढ़ा है. रिपोर्ट की मानें तो निजी बैंकों से ज्यादा सरकारी बैंक घाटे में पहुंचे हैं, जबकि सहकारिता के क्षेत्र में दोगुनी तेजी से एनपीए बढ़ रहा है. साल 2022 में 18 प्रतिशत बैंकों का पैसा एनपीए हुआ है. यही स्थिति रही तो सरकार पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता रहेगा और बैंकिंग सेक्टर को भी बड़े पैमाने में नुकसान होने के आसार है.

इधर आरोप प्रत्यारोप का दौर

प्रदेश में बढ़ते एनपीए को लेकर बीजेपी की तरफ से सफाई पेश की है. बीजेपी प्रवक्ता यशपाल सिसोदिया कहना है कि कोरोना के चलते सबसे ज्यादा व्यापारियों को नुकसान हुआ है. कई सारे स्टार्टअप और व्यापारिक संस्थान प्रभावित हुए हैं. ऐसे में नुकसान की वजह से एनपीए बढ़ा है. वित्तीय रुप से डिफाल्ट हुआ है. आने वाले समय में आर्थिक बेहतर होने की उम्मीद है. इधर कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि सरकारी योजनाओं का एनपीए बढ़ रहा है. लगातार फाइनेसिंग भी घटती जा रही है. कांग्रेस का कहना है कि जो एनपीए साल 2019-20 में घट रहा था, वह अब लगातार क्यों बढ़ रहा है. सरकार को जवाब देना चाहिए. बीजेपी अक्सर कांग्रेस पर आरोप लगती है कि कांग्रेस के समय में एनपीए बढ़ रहा था लेकिन आंकड़े कुछ और बता रहे हैं.

क्या है एनपीए ?

बैंक द्वारा जो लोन किसी भी व्यक्ति को दिया गया है. अब वह लोन बैंक को कोई भी इनकम जनरेट करके नहीं दे रहा है. तब वह एसेट नॉन परफार्मिंग एसेट यानि कि एनपीए कहलाता है. मध्य प्रदेश में साल 2022 तक 2 करोड़ 28 हजार से अधिक एकाउंट एनपीए हुए हैं.

बैकिंग सेक्टर

एजेंसी-               साल 2019-    2020-    2021-   2022

पब्लिक सेक्टर बैंक –  22478-    22210-   21803-   23478 करोड़

प्राइवेट सेक्टर बैंक –   4482-    4427-     2412-    3442 करोड़

ग्रामीण बैंक –   2054-    2744-    2618-     1961 करोड़

सहकारी बैंक  –   6474-    6767-    6493-    6944 करोड़

सरकारी सेक्टर

सेक्टर-        साल 2022

कृषि-           18106 करोड़

एमएसएमई-       6818 करोड़

हाउसिंग –         2120 करोड़

शिक्षा –            170 करोड़

जनहित य़ोजना-     29986 करोड़

एनपीए संकट कैसे निकले बाहर

एमपी में बढ़ते एनपीए को लेकर बैकिंग कमेटी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ हुए बैठक में यह तमाम आंकड़े पेश कर चुकी है. इस रिपोर्ट के बाद सरकार भी खुद समझने का प्रयास कर रही है कि बढ़ते एनपीए के संकट से कैसे बाहर निकला जाए. क्य़ोंकि न सिर्फ मध्य प्रदेश सरकार में एनपीए बढ़ता जा रहा है, बल्कि देश के 9 राज्य भी शामिल है. ऐसे में सरकार को लोकलुभावनी योजनाओं में कटौती करने की जरुरत है. एक तरफ प्रदेश में जीडीपी के बढ़ते आंकड़ों से भले ही केंद्र से लोन लेने की अनुमित सरकार को मिल रही है, लेकिन बैंकिंग सेक्टर में एनपीए की बढ़ती फेहरिश्त पूरे सिस्टम के संकट में डाल सकती है.