श्रीमद् भागवत में एकमात्र भागवतो अर्थात श्रीवैष्णवो के चरित्र वर्णन किया गया है -स्वामी सुदर्शनाचार्य -

श्रीवैष्णवो के चरित्र वर्णन
 
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श्रीमद् भागवत में एकमात्र भागवतो अर्थात श्रीवैष्णवो के चरित्र वर्णन किया गया है -स्वामी सुदर्शनाचार्य -

हनुमना - श्रीमद् भागवत अर्थात भक्तों का चरित्र भागवत में  भागवतों अर्थात श्री वैष्णवो के चरित्र का वर्णन किया गया है।उपरोक्त बातें स्थानीय शगुन मैरिज गार्डन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कथा में पहुंचे परम भागवत विंध्य में जनसंघ के संस्थापक तथा लोकतंत्र सेनानी वरिष्ठ भाजपा नेता सरयू प्रसाद वैद्य के कथा सुनने पहुंचने पर उनका बहुमान करते हुए कथा ब्यास नरसिंह मंदिर प्रयागराज पीठाधीश्वर पूज्यपाद स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज ने कही।

आगे उन्होंने कहा कि हनुमना में सरयू प्रसाद जी बैद्यजी  के यहां स्थित मंदिर दिव्य श्रीवैकुंठम में एक से बढ़कर एक शालिग्राम भगवान के विग्रह विराजमान हैं संयोग से मुझे भी ऐसे ठाकुर जी का दर्शन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है वैद्य जी जैसे ज्येष्ठ व श्रेष्ठ परम श्रीवैष्णव इस नगर में विराजमान है जो यहां की चलती फिरती गंगा है श्रीवैष्णवता की चर्चा करते हुए  महाराज जी ने कहा कि बैद्यजी के समान जिनके मस्तक पर भगवान के चरण रूपी तिलक अंकित हो वह मस्तक जब भगवान के सामने झुकता है भगवान अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। शास्त्रों में उर्द्वपुण्ड्र तिलक की महिमा बताते हुए कहा कि पीपल वृक्ष के नीचे लेटे एक महापातकी को सर्प काट लेता है संयोग से इसी दौरान उसके मस्तक पर बगुला विष्टा कर देता है और उसके मस्तक पर उर्द्वपुण्ड्र तिलक अर्थात श्री श्रीवैष्णव तिलक की आकृति बन जाती है और उसकी मृत्यु भी हो जाती है जिसके चलते एक तरफ यमराज के दूत आए दूसरी तरफ बैकुंठ के पार्षद आए और अंत में बैकुंठ के पार्षदों ने यमदूत उसे यह कहते हुए कि मेरे भगवान की आज्ञा है कि जिस के मस्तक पर उर्द्वपुण्ड्र तिलक लगा हो उसको अवश्य बैकुंठ लाओ इस प्रकार उस महापात की  को भी श्री वैष्णवी तिलक के चलते दिव्यश्री बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई पूज्य महाराज जी ने शास्त्रों के अनेक वर्णन करते हुए कहा कि वैद्य जी जैसे परम भागवत श्री वैष्णव होते हैं वह धारा वह नगर वह क्षेत्र पवित्र हो जाता है ।

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आगे महाराज श्री ने कहां की धन वही पवित्र है जो सत्कर्म में लगे। कमाए हुए धन में दशांश दान कर देने से कहा जाता है कि धन पवित्र हो जाता है लेकिन यह बात उस धन के लिए कई गई है जो पवित्रता व इमानदारी से कमाया हुआ धन है कमाने में कहीं न कहीं झूठ फरेब अवश्य होता है इसलिए  कमाए हुए धन में से 25 प्रतिशत दान करने का शास्त्रों ने वर्णन किया है लेकिन अगर झूठ फरेब छल से ब्राह्मण का लेश मात्र भी धन अपहरण किया जाता है तो वह सर्वस्व नाश करा देता है उन्होंने यह भी कहा कि यदि परिवार के लोग या स्वजन दुखी हो भूखे हो और हम उस धन से उन का भरण पोषण ना करके तथाकथित दान धर्म करें तो वह और भी बड़ा अपराध या पाप है कथा के दौरान भगवान श्री कृष्ण के 16108 विवाहों की चर्चा करते हुए कहां की भगवान ने आठ विवाह क्रमशः रुकमणी सत्यभामा जामवंती मित्रवृंदा कालिंदी यानी यमुना जी आदि से विवाह करके दुनिया को यह उपदेश दिया है कि भगवान की शरणागति हर कोई कर सकता है जामवंती यानी रीछ से भी भगवान ने श्यामवंतक मणि की लालच में विवाह किया और अपने ऊपर लगे कलंक को दुनिया के सामने मिटाया जो झूठा कलंक था। भौमसूर नामक राक्षस द्वारा 16100 कन्याओं को जबरदस्ती अपहरण कर उनके साथ शील हरण कर कारागृह में डालने जैसा कुकृत्य करने वाले का भी बधकर भगवान ने उन्हें अपने अपने घर जाने को कहा लेकिन जब वे नहीं कही गई और बोली कि मां-बाप तो स्वीकारेंगे  नहीं समाज भी नहीं स्वीकार करेगा । इसलिए आप ही मुझे स्वीकारें और भगवान ने 16100 उन सभी कन्याओं के साथ विवाह करके दुनिया को संदेश दिया कि समाज में ऐसी पीड़ित शोषित परित्यक्ता मां बहनों का पुनरोद्धार जरूर  होना चाहिए।। कार्यक्रम में भारी संख्या म आबाल वृद्ध नर नारी उपस्थित थे कार्यक्रम के मुख्य यजमान शंकरलाल गुप्त एवं उनकी धर्मपत्नी मुन्नी देवी रही।