देश राग

खड़गे को मालूम नहीं था प्रतिद्वंद्वी परछाईं निकला 
 
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देश राग

नीलकंठ विषपायी निकला
अपना मोटा भाई निकला
*
वो भोले का कंठहार है
फिर लेकर अंगड़ाई निकला
*
लोकतंत्र का उत्सव है पर
करने हाथापाई निकला
*
सब ख़ामोश हवाएं बोलीं
रहो सतर्क कसाई निकला
*
दीवारें तो उठा चुका अब
नयी खोदने खाई निकला
*
मुझे नहीं मालूम जरा भी
क्यों सांई हरजाई निकला
*
बांट रहा है घर -घर देखो
लेकर दूध -मलाई निकला
*
भीड़ थालियां बजा रही है
अपना हातिमताई निकला
*
खड़गे को मालूम नहीं था
प्रतिद्वंद्वी परछाईं निकला 
*
@ राकेश अचल