दुनिया के सबसे छोटे गणेश भगवान की मूर्ति
दुनिया के सबसे छोटे गणेश भगवान की मूर्ति
Sep 9, 2024, 17:41 IST
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दुनिया के सबसे छोटे गणेश भगवान की मूर्ति
भिलाई। गणेश चतुर्थी के मौके पर देश भर मे बड़े से बड़े मूर्तियां बनाने का प्रचलन बढ़ गया है। वहीं भिलाई इस्पात संयंत्र में कार्य करने वाले प्रख्यात मूर्तिकार डा. अंकुश देवांगन ने दुनिया की सबसे छोटी गणेश मूर्ति बनाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया है। उन्होंने भगवान् गणेश की इतनी छोटी मूर्तियां बनाई है कि उंगली के एक छोटे से नाखून पर आठ समा जाएंगे। उन्होंने इन मूर्तियों के माध्यम से संदेश दिया है कि बड़े प्रतिमाओं के विसर्जन से व्यापक स्तर पर जल प्रदूषण होता है ऐसे में छोटी मूर्तियां ही बनाई जानी चाहिए। ज्ञात हो कि भारत में पीने योग्य जल की निरंतर कमी हो रही है जिस पर हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी चिंता जताई है।
अंकुश देवांगन समकालीन भारतीय कलाजगत के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं जिन्हें दुनिया की सबसे छोटी मूर्ति बनाने के लिए 2004 में ही लिम्का बुक ऑफ द रिकॉर्ड का एवार्ड मिल चुका है। उनके द्वारा बनाई गई दुनिया की सबसे छोटी गणेश प्रतिमा सरसो के दाने से भी बीस गुनी छोटी अर्थात 0.4 मिलीमीटर की है। जिसे लंदन के गिनीज बुक कार्यालय में संग्रहित किया गया है। इसी तरह से वे नई दिल्ली के पास गुड़गांव स्थित लिम्का बुक के आफिस में उंगली के नाखून पर पच्चीस प्रतिमाओं को रखकर प्रदर्शन कर चुके हैं। सूक्ष्मतम कलाकृतियों में उन्होंने विश्व के हर धर्म के देवी-देवताओं और महापुरुषों की प्रतिमाएं बनाकर देश के गौरव को बढ़ाया है। वे अब तक पांच हजार से ज्यादा सूक्ष्म मूर्ति और चांवल के दानों पर पेन्टिंग बना चुके हैं। यह कृतियां सामान्य आंखो से नही दिखाई देती और इसे देखने के लिए माइक्रो पावर लैंस की आवश्यकता पड़ती है। इन सूक्ष्मकलाओं की देश भर में वे 500 से ज्यादा सफल प्रदर्शनी लगा चुके हैं।
डा. अंकुश देवांगन सिर्फ छोटी मूर्तियां ही नहीं बनाते हैं बल्कि उनके द्वारा बनाई गई बड़ी बड़ी मूर्तियां चार-छह मंजिल इमारत से कम नही होती। सिविक सेंटर का भव्य कृष्ण अर्जुन रथ, रूआबाधा का पंथी चौक, बोरिया गेट का प्रधानमंत्री ट्राफी चौक, सेक्टर 1 का श्रमवीर चौक, भिलाई निवास के नटराज के अलावा उन्होंने सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेला हरियाणा, वसुंधरा उद्यान दुर्गापुर स्टील प्लांट में सैकड़ो मूर्तियां बनाई है। पुरखौती मुक्तागन रायपुर, मदकूद्वीप, विश्व का सबसे बड़ा लौहरथ दल्ली राजहरा उनके कालजयी कलाकृतियों के गवाह हैं। वे अपनी कला के माध्यम से सामाजिक सरोकार के कार्यों के लिए जाने जाते हैं। छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में लगभग 36 वर्षों से कलाप्रदर्शनी तथा प्रशिक्षण देते आ रहे हैं ताकि यहां के बच्चे हिंसा के क्षेत्र में न जाएं और सृजनशील बनें। जिसका उचित प्रतिफल भी सामने आते रहा है। वे जानते हैं कि उनके इन छोटे-छोटे कार्यों से कोई बड़ी क्रांति नही आ जाएगी किन्तु इससे एक भी बच्चा यदि हिंसा के रास्ते में जाने से बच गया तो वह और उसकी कला धन्य हो जाएगी। वे छत्तीसगढ़ के पहले कलाकार हैं जो नई दिल्ली में ललित कला अकादमी के एक्जीक्यूटिव बोर्ड मेम्बर बने हैं।jsr
अंकुश देवांगन समकालीन भारतीय कलाजगत के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं जिन्हें दुनिया की सबसे छोटी मूर्ति बनाने के लिए 2004 में ही लिम्का बुक ऑफ द रिकॉर्ड का एवार्ड मिल चुका है। उनके द्वारा बनाई गई दुनिया की सबसे छोटी गणेश प्रतिमा सरसो के दाने से भी बीस गुनी छोटी अर्थात 0.4 मिलीमीटर की है। जिसे लंदन के गिनीज बुक कार्यालय में संग्रहित किया गया है। इसी तरह से वे नई दिल्ली के पास गुड़गांव स्थित लिम्का बुक के आफिस में उंगली के नाखून पर पच्चीस प्रतिमाओं को रखकर प्रदर्शन कर चुके हैं। सूक्ष्मतम कलाकृतियों में उन्होंने विश्व के हर धर्म के देवी-देवताओं और महापुरुषों की प्रतिमाएं बनाकर देश के गौरव को बढ़ाया है। वे अब तक पांच हजार से ज्यादा सूक्ष्म मूर्ति और चांवल के दानों पर पेन्टिंग बना चुके हैं। यह कृतियां सामान्य आंखो से नही दिखाई देती और इसे देखने के लिए माइक्रो पावर लैंस की आवश्यकता पड़ती है। इन सूक्ष्मकलाओं की देश भर में वे 500 से ज्यादा सफल प्रदर्शनी लगा चुके हैं।
डा. अंकुश देवांगन सिर्फ छोटी मूर्तियां ही नहीं बनाते हैं बल्कि उनके द्वारा बनाई गई बड़ी बड़ी मूर्तियां चार-छह मंजिल इमारत से कम नही होती। सिविक सेंटर का भव्य कृष्ण अर्जुन रथ, रूआबाधा का पंथी चौक, बोरिया गेट का प्रधानमंत्री ट्राफी चौक, सेक्टर 1 का श्रमवीर चौक, भिलाई निवास के नटराज के अलावा उन्होंने सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेला हरियाणा, वसुंधरा उद्यान दुर्गापुर स्टील प्लांट में सैकड़ो मूर्तियां बनाई है। पुरखौती मुक्तागन रायपुर, मदकूद्वीप, विश्व का सबसे बड़ा लौहरथ दल्ली राजहरा उनके कालजयी कलाकृतियों के गवाह हैं। वे अपनी कला के माध्यम से सामाजिक सरोकार के कार्यों के लिए जाने जाते हैं। छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में लगभग 36 वर्षों से कलाप्रदर्शनी तथा प्रशिक्षण देते आ रहे हैं ताकि यहां के बच्चे हिंसा के क्षेत्र में न जाएं और सृजनशील बनें। जिसका उचित प्रतिफल भी सामने आते रहा है। वे जानते हैं कि उनके इन छोटे-छोटे कार्यों से कोई बड़ी क्रांति नही आ जाएगी किन्तु इससे एक भी बच्चा यदि हिंसा के रास्ते में जाने से बच गया तो वह और उसकी कला धन्य हो जाएगी। वे छत्तीसगढ़ के पहले कलाकार हैं जो नई दिल्ली में ललित कला अकादमी के एक्जीक्यूटिव बोर्ड मेम्बर बने हैं।jsr