काली मिर्च की खेती बदल सकती है किसानों की किस्मत, होगी लाखों की कमाई, ये है खेती करने का उन्नत तरीका

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काली मिर्च की खेती बदल सकती है किसानों की किस्मत, होगी लाखों की कमाई, ये है खेती करने का उन्नत तरीका
भारत मसाला उत्पादों के मामले में दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। देश में मसालों का वार्षिक उत्पादन 4.14 मिलियन टन है। भारत दुनिया में कई तरह के मसालों को उगाता है जैसे इलायची, लौंग, काली मिर्च, लाल मिर्च जैसे बहुत से मसाले हैं। काली मिर्च को मसालों की फसलों का राजा कहा जाता है। इसकी खेती कर किसान काफी अच्छस मुनाफा कमा सकते हैं। भारत में उत्पादित कुल काली मिर्च में से 90 प्रतिशत से भी ज्यादा का उत्पादन अकेले केरल राज्य में होता है। मुख्य रूप से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में काली मिर्च की खेती जमकर की जाती है। महाराष्ट्र, कुर्ग, मलावर, कोचीन, त्रावणकोर, और असम के पहाड़ी इलाकों में भी काली मिर्च की खेती की जा रही है। तो आइये जानते हैं काली मिर्च की खेती करने की पूरी प्रोसेस।
काली मिर्च की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु
काली मिर्च की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है।काली मिर्च की खेती के लिए लाल लेटेराइट मिट्टी और लाल उत्तम मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 5 से 6 के बीच अनुकूल होता है। । काली मिर्च की खेती पर्याप्त वर्षा तथा आर्द्रता वाले आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। गरम और आर्द्र जलवायु इसकी खेती के लिए उत्तम है। इसकी फसल के लिए वार्षिक वर्षा 200 सेमी उत्तम मानी जाती है।
काली मिर्च की पौध की तैयारी और रोपाई
काली मिर्च को आप सितंबर माह के बीच में लगाएं तो काफी अच्छा होगा। काली मिर्च को कलम विधि से काटकर भी लगा सकते हैं या रोपित कर सकते हैं। व्यावसायिक तौर पर काली मिर्च की खेती करने के लिए सामान्यत कलम द्वारा पौधे तैयार किये जाते है। काली मिर्च की पौध तैयार करने के लिए बेलों से 2-3 गांठों वाली काली मिर्च की कलमें बनाकर मार्च-अप्रैल के महीने में प्लास्टिक की थैलियों में लगा दी जाती है। ये काली मिर्च की कटिंग लगभग 3 महीने में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। काली मिर्च के बीज को सीधा खेत में नही लगा सकते, क्योंकि इसके बीजों को खेत में अंकुरित होने में काफी समय लगता हैं। इसके बीज अंकुरण होने के लिए एक से डेढ़ महीने का भी टाइम लग जाता हैं। इसलिए इसके खेत की रोपाई बीजों द्वारा न करके पहले पौध तैयार किए जाते हैं।
खाद और उर्वरक
जैविक खाद के रूप में गोबर या कम्पोस्ट को 10 किलोग्राम प्रति पौधा तथा नीम केक को 1 कि. ग्राम पौधा की दर से मई माह में डालना चाहिए। अधिक अम्लीय मृदा में एक वर्ष के अंतराल पर 500 ग्राम प्रति पौधा की दर से चुना या डोलामाइट का उपयोग अप्रैल-मई महीने में कर सकते हैं। 3 वर्ष के बाद से प्रत्येक बेल को 20 किलो खाद/कम्पोस्ट, 300 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और 1 किलो सुपर फास्फेट देना चाहिए। उर्वरक की यह मात्रा दो समान किश्तों में दी जानी चाहिए। पहली किश्त सितंबर के पहले सप्ताह में और दूसरी जनवरी में देनी होगी।
सिंचाई
काली मिर्च के पौधों की रोपाई सितंबर माह में की जाती है, इस समय मौसम नम होता है तथा बारिश का भी होता है। गर्मियों में काली मिर्च की फसल में सिचाई 2 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए और सर्दियों में 1 सप्ताह के अंतराल पर सिचाई करें। काली मिर्च की फसल में पर्याप्त नमी बनाये रखे।
काली मिर्च की तुड़ाई और पैदावार
आमतौर काली मिर्च के फलों की कटाई नवंबर महीने से शुरू होकर मार्च महीने तक चलती है। काली मिर्च के पौधे पर फूल आने के बाद इनको पूरी तरह से तैयार होने में 6 से 8 महीने का समय लगता हैं। सफेद और काली दोनों ही मिर्च एक पौधे पर लगती हैं। लेकिन इन्हें तोड़ने के बाद काला और सफेद रूप दिया जाता हैं। सफेद मिर्च बनाने के लिए इसके फल को पानी में डालकर इनका उपरी छिलका उतार लिया जाता है। फिर उसे धूप में तीन से चार दिन तक सुखाया जाता है। जिससे इनका रंग सफेद दिखाई देने लगता है। काली मिर्च के लिए इसके फल को पूरी तरह से पकने दिया जाता हैं। जब फल का रंग हरे रंग से बदलकर चमकीला नारंगी हो जाता है तो फल पूरी तरह से पक जाता है। जिसके बाद उसे पौधे से अलग कर लिया जाता है। काली मिर्च के एक पौधे से साल में 4 से 6 किलो तक काली मिर्च की फसल ली जा सकती है। इसकी खेती में एक हेक्टेयर में 1100 से ज्यादा पौधे लगाये जा सकते हैं। इसके अनुसार 40 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार ली जा सकती है।साभार - betul samachar