लहसुन की खेती बदल देगी किसानों की किस्मत, कम समय में ज्यादा मुनाफा, जाने खेती करने का सही तरीका
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लहसुन की खेती बदल देगी किसानों की किस्मत, कम समय में ज्यादा मुनाफा, जाने खेती करने का सही तरीका
लहसुन एक कन्द वाली मसाला फसल है। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वाद होता है। लहसुन दूसरी कंदीय सब्जियों के मुकाबले अधिक पौष्टिक गुणों वाली सब्जी है। यह पेट के रोग, आँखों की जलन, कण के दर्द और गले की खराश वगैरह के इलाज में कारगर होता है। लहसुन एक ऐसा मसाला है, जो किसी भी व्यंजन के स्वाद को सहजता से बढ़ा सकता है। साथ ही सेहत के नजरिए से भी लहसुन का महत्व किसी से छिपा नहीं है। आयुर्वेद में लहसुन को सौ मर्ज की एक दवा बताया गया है। तो आइये जानते हैं लहसुन की खेती कैसी की जाती है।
लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त भूमि और जलवायु
लहसुन की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। फिर भी अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिस में जैविक पदार्थों की मात्रा अधिकं हो तथा जिस का पीएच मान 6 से 7 के बीच हो, इस के लिए सब से अच्छी हैं। लहसुन की खेती के लिए मध्यम ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है। लहसुन को ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है वैसे लहसुन के लिये गर्मी और सर्दी दोनों ही कुछ कम रहे तो उत्तम रहता है अधिक गर्मी और लम्बे दिन इसके कंद निर्माण के लिये उत्तम नहीं रहते है।
खेती की तैयारी
लहसुन की जड़ें भूमि की ऊपरी सतह से करीब 15 सेमी गहराई तक ही सीमित रहती है इसलिए भूमि की अधिक गहरी जुताई की आवश्यकता नहीं है, इसलिये दो जुताई करके, हेरो चलाकर भूमि को भुरभुरा करके खरपतवार निकालकर, समतल कर देना चाहिए।
बीज की मात्रा और बिजाई का समय
लहसुन की अधिक उपज के लिए डेढ़ से 2 क्विंटल स्वस्थ कलियाँ प्रति एकड़ लगती हैं। कलियों का व्यास 8-10 मिली मीटर होना चाहिए। लहसुन की बुवाई का उपयुक्त समय ऑक्टोबर – नवम्बर होता है।
बीज व बुवाई
अधिक उपज के लिए किसानों को बुवाई के लिए डबलिंग विधि का उपयोग करना चाहिए। बिजाई के लिए क्यारियों में कतारों दूरी 15 सेंटीमीटर व कतारों में कलियों का नुकीला भाग ऊपर की ओर होना चाहिए और बिजाई के बाद कलियों को 2 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की तह से ढक दें।
सिंचाई और निराई गुड़ाई
बुआई के तत्काल बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। लहसुन की गांठों के अच्छे विकास के लिए सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतर पर और गर्मियों में 5-7 दिनों के अंतर पर सिंचाई होनी चाहिए। जड़ों में उचित वायु संचार हेतु खुरपी या कुदाली द्वारा बोने के 25-30 दिन बाद प्रथम निदाई-गुडाई एवं दूसरी निदाई-गुडाई 45-50 दिन बाद करनी चाहिए।
कटाई एवं उपज
पौधों की पत्तियों में पीलापन आने व सूखना शुरू होने पर सिंचाई बंद कर दें। इस के कुछ दिनों बाद लहसुन की खुदाई करें। फिर गांठों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखाने के बाद पत्तियों को 2-3 सेंटीमीटर छोड़ कर काट दें या 25-30 गांठों की पत्तियों को बांध कर गूछियों बना लें। यदि कंदों को उनकी पत्तियों द्वारा गुच्छों में बांध कर किन्हीं अवलंबों पर लटका कर सुखाया जाय तो उत्तम रहेगा। इससे लगभग 100-125 क्विंटल प्रति हेक्टर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।साभार - betul samachar