सावधान चुनावी जय -वीरू की जोड़ियों से

सावधान  चुनावी  जय -वीरू की जोड़ियों से
 
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सावधान  चुनावी  जय -वीरू की जोड़ियों से

मध्य्प्रदेश विधानसभा के चुनाव ,चुनाव न हुए शोले फिल्म हो गए। इस चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की जोड़ी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जय-वीरू की जोड़ी क्या कहा, सचमुच उन्होंने अपने आपको इसी रूप में स्वीकार भी कर लिया और पलटकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनावी शोले फिल्म का ' गब्बर सिंह ' कह दिया। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में पहली बार अपने प्रतिद्वंदियों के लिए फ़िल्मी नायकों के नाम का इस्तेमाल किया जा रहा है।

आज से 48 साल पहले जब हम युवा थे तब शोले फिल्म बनी थी। आज की पीढ़ी ने तो शोले देखी नहीं होगी,लेकिन शोले के संवाद सभी ने सुने हैं ,क्योंकि वे सब सोशल मीडिया पर उपलब्ध है।  शोले फिल्म आज भी जब परदे पर आती है तो अपने लिए दर्शक खोज ही लेती है। अपने नए पाठकों को बता दूँ कि शोले  एक भारतीय हिन्दी एक्शन फिल्म है,जो 1975 में रिलीज हुई थी । सलीम-जावेद द्वारा लिखी इस फिल्म का निर्माण जीपी सिप्पी ने और निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था। शोले की कहानी जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेन्द्र) नामक दो अपराधियों पर केन्द्रित है। इस जोड़ी को डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) से बदला लेने के लिए पूर्व पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) अपने गाँव लाता है। जया भादुरी और हेमा मालिनी ने भी फ़िल्म में मुख्य भूमिकाऐं निभाई हैं।

रजत पट की फिल्म शोले को भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट के 2002 के "सर्वश्रेष्ठ 10 भारतीय फिल्मों" के एक सर्वेक्षण में शोले को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। 2005 में पचासवें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में इसे पचास सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला। और आज भी मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनावों में इस फ़िल्मी जोड़ी की तुलना वास्तविक जीवन में सक्रिय  राजनीतिक पात्रों से किया जा रहा है। ये फिल्म की कहानी ,पत्रों की सफलता है किन्तु सियासत कि भाषा ,संवाद और पात्रों कि नाकामी है।

भाजपा ने दिग्विजय और कमलनाथ की जोड़ी को जय और वीरू की जोड़ी कहा तो खुद भाजपा के नेता नरेंद्र सिंह तोमर ने कह दिया कि असली जय और वीरू तो वे और शिवराज सिंह चौहान हैं । उनकी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कीजोड़ी को जय और वीरू माना जाता है। एक जमाने में ये सच भी था। लेकिन सियासत के जय-वीरू कभी किसी गब्बर का खात्मा नहीं कर पाता । वे गब्बरों का या तो समर्पण करते हैं,या उसे संरक्षण देते हैं या खुद गब्बर बन जाते हैं । दिग्विजय और कमलनाथ को जय-वीरू की जोड़ी कहना उनके साथ मजाक करने जैसा है, क्योंकि इस जोड़ी ने मध्यप्रदेश की राजनीति में 2018 के विधान सभा चुनाव से पहले कभी एक जोड़ी के रूप में काम नहीं किया। कमलनाथ हमेशा केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे और दिग्विजय सिंह राज्य की राजनीति में भले ही वे पार्टी के महासचिव बने हों, या राज्य सभा के सदस्य।

कांग्रेस में दिग्गी और कमलनाथ कि जोड़ी के वजूद में आने का ही परिणाम था कि 2018  के विधानसभा चुनाव में 15  साल तक अखंड चली भाजपा की सरकार के पैर उखड़ गए थे और उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा था। लेकिन बीहड़ हो या सियासत, सभी जगह बिभीषण होते है। 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा के लिए बिभीषन बनकर कांग्रेस की जय-वीरू की चर्चित जोड़ी के हाथ से सत्ता छीन ली और भाजपा के गब्बर यानि शिवराज सिंह चौहान को सौंप दी। भाजपा के सत्ता में आने के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान को जय -वीरू की जोड़ी कि न पहचान मिल पायी और न सम्मान।

पिछले तीन साल में कांग्रेस के जय-वीरू तो लगातार मजबूत हुए हैं लेकिन भाजपा के गब्बर सिंह के गिरोह  में लगातार उथल पुथल हो रही है । कहने को ये गिरोह सियासी है लेकिन इसकी तुलना चंबल  के उन गिरोहों से की जा रही है जो कभी इतिहास का अभिन्न हिस्सा थे। शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व काल में नरेंद्र सिंह तोमर और शिवराज सिंह चौहान की जोड़ी जय और वीरू की जोड़ी की तरह चर्चित थी । तोमर चाहे शिवराज सिंह चौहान कि कैबिनेट में मंत्री रहे हों या भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष दोनों में जबरदस्त केमिस्ट्री थी। ऐसी कैमिस्ट्री कि भाजपा के तमाम नेता तक उनसे ईर्ष्या करने लगे थे। 2014  के बाद तोमर केंद्र कि राजनीति में गए तो ये जोड़ी अपने आप टूट गयी । शिवराज सिंह आपने लिए कोई नया वीरू नहीं खोज पाए।

राजनीती की चम्ब्ल में तब से लेकर अब तक न जाने कितना पानी बह चुका है। शिवराज सिंह चौहान अब जय नहीं गब्बर सिंह बन गए हैं और अकेले दहाड़ रहे हैं। उनकी भूमिका अब गब्बर मामा की हो गयी है। वे अब राखियां बंधवाकर सत्ता में टिके रहना चाहते हैं ,जबकि दिग्गी और कमलनाथ की जोड़ी जैसी 2018  में थी वैसी ही आज 2023 में भी है और पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है। जय-वीरू की इस कांग्रेसी जोड़ी ने भाजपा के पूरे गिरोह की नींद उड़ा रखी है ।  आखिर में हारकर गब्बर को ही किनारे करने की कोशिश करने वाले भाजपा के असली जय-वीरू यानि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मध्यप्रदेश में ताबड़तोड़ मेहनत करना पड़ रही है। मोदी-शाह कि जोड़ी के सामने असली चुनौती 2023 में सियासी शोले फिल्म को पिटने से बचाने की है।

कांग्रेस की जय-वीरू की जोड़ी ने जनता को लूटने के बजाय लुटाने का ऐसा जोरदार वचनपत्र लिखा है कि उसके सामने भाजपा के गब्बर सिंह की तमाम घोषणाएं मौथरी पड़ती दिखाई दे रहीं है।  जनता गब्बर सिंह पर भरोसा करने से कतरा रही है। आखिर गब्बर तो गब्बर होता है ,उसे साधू मानना आसान काम नहीं है। गब्बर का आतंक कहें या लोक प्रियता अब अर्स से फर्श पर आती दिखाई दे रही है। लेकिन चुनाव में आ मजा रहा है। विधान सभा के चुनाव में यदि जय-वीरू का जिक्र न हुआ होता तो चुनाव बड़ा बेरौनक हो जाता। क्योंकि इस चुनाव के तम्मा रंग पहले से उड़े हुए है। सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने तीन केंद्रीय मंत्री और आधा दर्जन सांसद और एक राष्ट्रीय महामंत्री को मैदान में उतार कर पहले ही पराजय स्वीकार कर ली है।

 मुझे याद है कि पहले किस विधानसभा चुनाव में कोई फ़िल्मी किरदार नजीर नहीं बनता था । सियासत में हमारे नायक महा भारत या रामचरित मानस से लिए जाते थे । कोई राम-लक्ष्मण की जोड़ी होती थी तो कोई कृष्ण अर्जुन की जोड़ी। कहीं चाणक्य होते थे तो कहीं द्रोणाचार्य। लेकिन अब सब बदल गया है ।  अब पौराणिक आख्यानों का नहीं फ़िल्मी आख्यानों का सहारा लिया जाने लगा है। अब सियासी संवाद भी बदल गए हैं। मध्य्प्रदेश में अब विकास का मतलब बकौल डॉ नरोत्तम मिश्रा -हेमामालिनी का नचवाना होता है। जिस नेता ने अपने चुनाव क्षेत्र में हेमा मालिनी  को नचवा लिया उसे ही असली गब्बर सिंह कहा और माना जाना चाहिए। कम से कम दतिया को तो ये सौभाग्य मिला हुआ है। दतिया से विधायक और प्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा तो सार्वजनिक रूप से अपनी उपलब्धियों में हेमा मालिनी के नाच को गिनवा ही चुके हैं।

मेरे ख्याल से देश की सियासत में जय-वीरू की पहली जोड़ी अटल-आडवाणी की थी। बाद में देश के अनेक राज्यों की सियासत में जय-वीरू और गब्बर सिंह पैदा हुए हैं। उन्हें पहचानने की जरूरत है। भविष्य में भी लगता है कि राजनीति में ये जय-वीरू और गब्बर सिंह ही महत्वपूर्ण किरदार अदा करेंगे। ये या तो हेमा मालिनी को नचवायेंगे या फिर बंदूक की गोलियां चलकर जनता को आतंकित करेंगे। इसलिए सावधान !
@ राकेश अचल