सत्ता के गलियारे से .. रवि अवस्थी

सत्ता के गलियारे से .. रवि अवस्थी
 
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सत्ता के गलियारे से .. रवि अवस्थी

** मप्र का भी अयोध्या से नाता
बात उज्जैन में सीएम के रात रुकने वाले मिथक तोड़ने की हो या मप्र के अयोध्या से कनेक्शन की। प्रदेश के नए मुखिया डॉ.मोहन यादव ने दोनों ही मामलों के ऐतिहासिक तथ्यों को सामने लाने में बेहद सूझबूझ का परिचय दिया। मिथक को जहां उन्होंने सिंधिया राजघराने की देन बताया तो उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का संबंध अयोध्या से स्थापित किया। जिन्होंने दो हजार वर्ष पहले अयोध्या राम मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था। 

महाकाल मंदिर में लड्डू बनाने पहुंचे मुख्यमंत्री यादव ने कहा— "हम तो अवंतिका नगरी से 5 लाख लड्डू भेजकर पुराने रिश्ते को ही जीवंत कर रहे है।" दूर का ही सही,प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव के दौरान अयोध्या से कुछ तो नया रिश्ता बना। वर्ना अब तक तो पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ ही खुद को प्रभु श्रीराम का ननिहाल बताकर इतरा रहा था।
 ** एक पंथ दो काज
मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव संभागीय समीक्षा बैठकों के साथ ही संभागीय मुख्यालयों में आभार यात्रा भी निकाल रहे हैं। इस रणनीति से वह एक ओर जहां यह संदेश देने में सफल रहे कि सरकार सिर्फ राजधानी तक सीमित नहीं है। वहीं आभार यात्रा के जरिए मैदानी सियासी समीकरण साधे जा रहे हैं तो आमजन के बीच एक नई पहचान भी स्थापित हो रही है। एक तरह से  इन संभागीय दौरों के जरिए उन्होंने सूबे की नब्ज को टटोलने का काम भी  किया है। इसे कहते हैं..एक तीर से कई निशाने साधना। 

** नंबर तीन कौन ?
राज्य मंत्रिमंडल में आमतौर पर गृह मंत्री को नंबर दो पर माना जाता है। बदले हुए निजाम में दो उप मुख्यमंत्रियों की ताजपोशी व गृह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास होने से चर्चा अब मंत्रिमंडल के तीसरे नंबर को लेकर है। विभाग और सरकारी बंगले को यदि इसका मापदंड माना जाए तो प्रदेश के पंचायत व ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल इस पायदान पर कहे जा सकते हैं। विभाग तो उनका है ही भारी- भरकम। बंगला भी सिविल लाइंस में सात नंबर मिला। इस पर अब तक पूर्व मंत्री व विधायक ओमप्रकाश सकलेचा काबिज थे।
राजधानी में मुख्यमंत्री आवास के बाद यह दूसरा बड़ा सरकारी बंगला है। तत्कालीन मुख्यमंत्री पीसी सेठी के कार्यकाल में तो यह मुख्यमंत्री आवास व कार्यालय दोनों ही हुआ करता था। बाद में यह पूर्व उपमुख्यमंत्री शिवभानु सोलंकी व सुभाष यादव का भी आवास रहा। दोनों ही दिग्गज अपने दौर में नंबर दो पर रहे ।
** सरकारी बंगले का मोह
राजनीति में कुर्सी व सरकारी बंगला मुश्किल से हाथ आते हैं और जाते भी साथ ही हैं। मप्र की 15वीं विधानसभा में निर्वाचित हुए विधायकों में कई इस बार कुर्सी से हाथ धो बैठे,लेकिन बंगले का मोह वे नहीं त्याग पा रहे हैं। इनमें 14 पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। आलम यह कि बंगलों पर इन्हें लगातार काबिज देख दर्जनभर नए मंत्रियों को मुख्यमंत्री से गुहार लगानी पड़ी। कुछ को तो राहत मिल गई और कुछ अब भी  इंतजार में हैं, लेकिन बड़ी दिक्कत विधानसभा सचिवालय की है। जो  वक्त से पहले नोटिस देने के बावजूद अब तक विधायक विश्राम गृहों के कक्ष खाली नहीं करवा पा रहा है। 

** दुविधा में कांग्रेस
घर का मुखिया यदि पड़ोसी से दूरी रखे और बाकी सदस्य निकटता तो मुखिया की मनोस्थिति को समझा जा सकता है। कुछ यही हाल इन दिनों कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व का है। श्रीराम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण पत्र को लिखित में ठुकरा कर कांग्रेस नेतृत्व प्रतिद्वंदियों के निशाने पर आ गया। स्वयं कांग्रेस के कई नेताओं को अपने नेतृत्व का फैसला नागवार गुजरा। कई ने मुखरता के साथ फैसले की आलोचना की। आलम यह ,कि उप्र व हिमाचल इकाई के कई नेता तो पहले ही सरयू स्नान कर रामगढ़ी दर्शन कर आए। मप्र इकाई भी ओरछा व छिंदवाड़ा में राम नाम जप रही है। आगे एक लाख श्रद्धालुओं को अयोध्या पहुंचाने की भी तैयारी है। इस विरोधा भास ने बता दिया कि कांग्रेस अब तक दुविधा के भंवर में ही है।

 **पार्टी मामले में भी तंगदिली
बीजेपी के चैतन्य काश्यप इकलौते विधायक,जिन्होंने लगातार तीसरी बार अपने वेतन व भत्ता जनहित में छोड़ने का फैसला लिया। अन्य कोई विधायक उनका अनुसरण नहीं कर सका..न बीजेपी में,न कांग्रेस में। बहरहाल वेतन,भत्ता तो छोड़िए कांग्रेस विधायक तो अपनी पार्टी के हाथ मजबूत करने में भी तंगदिली दिखा रहे हैं। एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 16वीं विधानसभा में निर्वाचित होकर पहुंचे कांग्रेस के 66 में 61 विधायक करोड़पति हैं और अब तक 50 फीसद से ज्यादा ने पार्टी के 'डोनेट फॉर देश' में अपना योगदान नहीं दिया।
 कमोबेश,यही हाल पार्टी के अन्य सक्षम नेताओं व कार्यकर्ताओं का है। इसके चलते मप्र इकाई पार्टी के इस अभियान में अब तक सिर्फ 81 लाख का योगदान कर पांचवें नंबर पर बनी हुई है। जबकि पड़ोसी राजस्थान साढ़े तीन करोड़ के कलेक्शन के साथ नंबर वन है। बता दें कि 138 साल की हुई कांग्रेस ने अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने उक्त कैंपेन शुरू किया है। इसमें योगदान की राशि भी 138 के जादुई अंकों में रखी गई है।

** भूख है तो सब्र कर..
आर्थिक संकट के इस दौर में सूबे के नगरीय निकायों की हालत किसी से छिपी नहीं है। कहीं कर्मचारी वेतन के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो कहीं ठेकेदार अपना भुगतान पाने रूठे हुए हैं। ऐसे ही हालात पर शायर मिजाज नर्मदापुरम नपा के सीएमओ नवनीत पांडे ने इस अंदाज में अपने मातहतों को नसीहत दे डाली..."भूख है तो सब्र कर,रोटी नहीं तो क्या हुआ..आजकल परिषद में है जेर-ए-बहस ये मुद्दा। गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नहीं,पेट भरकर गालियां दो और आह भरकर बद्दुआ।।"अब बहस इस बात पर कि दुष्यंत कुमार की इस गजल के बहाने पांडे का निशाना किस ओर रहा?  
**आस्था का मामला
धार्मिक आस्था हर एक का निजी विषय है,लेकिन किसी सरकारी सेवक का इससे जुड़ा कोई बड़ा निर्णय चर्चा का विषय जरूर बनता है। ऐसी ही चर्चा मप्र कैडर के 1994 बैच के आइपीएस राजाबाबू सिंह को लेकर है। सिंह वर्तमान में बीएसएफ नईदिल्ली में बतौर आईजी तैनात हैं। बताया जाता है कि इलाहाबाद विवि के छात्र रहते हुए सिंह वर्ष 1992 में बतौर कारसेवक अयोध्या गए थे। विवादित ढांचा ढहाए जाने के वक्त भी वह अयोध्या में थे। अयोध्या में अब मंदिर निर्माण होने पर उनकी इच्छा अयोध्या में ही बसने व रामभक्ति में दिन बिताने की है। इसके लिए उन्हें अपनी सेवानिवृति का इंतजार है। जो वर्ष 1927 में होनी है।

** होनहार बिरवान के....
'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' मुहावरे का अर्थ यही कि बड़ा वृक्ष बनने वाले पौधे के पत्ते भी चमकदार हरीतिमा लिए हुए होते हैं। वर्ष 2023 बैच के मप्र कैडर के आइपीएस अयन जैन व उनके आइएएस भाई अर्थ जैन (2021 बैच,एसडीएम उज्जैन) इसे चरितार्थ करते हैं। अर्थ व अयन को अपने पिता सेवानिवृत आइपीएस मुकेश जैन की तरह मप्र में ही सेवा का अवसर मिला है।
अपने बेटों की तरह मुकेश जैन व उनके छोटे भाई उपेन्द्र जैन (1991 बैच,एमडी,पुलिस हाउसिंग) भी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे। मूलत: राजगढ़ जिला निवासी अर्थ व अयन यह रिकॉर्ड कायम करने वाले दूसरे बंधु हैं। इससे पहले 1949 बैच के आइपीएस स्व.ब्रह्मानंद यादव के बड़े बेटे आइएएस स्व.अजय सिंह (1976 बैच) व छोटे बेटे सेवानिवृत आइपीएस विजय यादव (1987 बैच) ने यह रिकॉर्ड कायम किया था।

** गाली देने मांगी अनुमति
विशेष हालातों के शिकार लोगों द्वारा अब तक इच्छामृत्यु या गर्भपात की मांग करते ही सुना गया है लेकिन हाल ही में एक ऐसा मामले सामने आया, इसमें आवेदक ने क्षेत्रीय एसडीएम से किसी को गाली देने के लिए अनुमति मांगी है। वह भी दो—चार मिनट नहीं,बल्कि पूरे दो घंटे तक माइक पर।मामला पड़ोसी राज्य उप्र के प्रतापगढ़ का है। वहां, बुलडोजर कार्यवाही पीड़ित एक सनातनी को सरकार से कोई गिला नहीं,अलबत्ता इस कार्यवाही का समाचार प्रकाशित करने वाले पत्रकार से जरूर नाराजगी है। दरअसल,अखबारनवीस ने कार्यवाही के ब्योरे के साथ संबंधित को भू-माफिया भी बता दिया। बस यही बात,पीड़ित को अखर गई। एसडीएम को लिखे पत्र में पीड़ित ने कहा-'गालियां देने के दौरान वह न तो कोई हिंसक रास्ता अपनाएगा,न धमकी देगा। बाद में वह खुद को पुलिस के सुपुर्द भी कर देगा।'
 गनीमत है,मप्र अब तक इस मामले में आदर्श स्थिति में  है। अलबत्ता  एक अपराधिक मामले की रपट में आरोपी को हिस्ट्रीशीटर की उपमा दिए जाने पर एक समाचार पत्र के भोपाल निवासी संपादक जरूर ग्वालियर न्यायालय में पेशियां अब भी भुगत रहे हैं।