मध्य प्रदेश सरकार सरपंचों को विधायकों / सांसदों की भाँति वेतन , भत्ता एवं पेंशन दे…………

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मध्य प्रदेश सरकार सरपंचों को विधायकों / सांसदों की भाँति वेतन , भत्ता एवं पेंशन दे…………
मध्यप्रदेश राज्य पंचायत परिषद के द्वारा इंदौर एवं उज्जैन संभाग के त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचित पदाधिकारियों एवं प्रतिनिधियों का विशाल सम्मेलन षोडसी मैरिज गार्डन, मंगल नाथ रोड खाक चौक ,उज्जैन मध्यप्रदेश में आयोजित किया गया।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय पंचायत परिषद के मुख्य महा मंत्री श्री शीतला शंकर विजय मिश्र ने मुख्य वक्ता ने कहा कि पंचायती राज देश की तीसरी सरकार-एक विकल्प है और ग्राम सभा भारतीय गण राज्य की धुरी है और ग्राम पंचायत का सरपंच चौबीसों घंटे ग्राम वासियों के बीच रहकर जनता की सेवा करता है और लोगों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करता है लेकिन उसको सम्मान जनक वेतन , भत्ता नहीं मिलता है और पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है जबकि स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में वह अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करता है।मेरी मध्य प्रदेश की सरकार से माँग है सरपंचों को विधायकों / सांसदों की भाँति सम्मान जनक वेतन , भत्ता एवं पेंशन देने की व्यवस्था करे।
श्री मिश्र ने कहा कि महात्मा गांधी ने स्वावलंबी ,स्व शासी तथा सहभागी ग्राम स्वराज की कल्पना आज़ादी के आंदोलन के दौरान ही की थी। गांधी के अनुसार भारत गाँव में बसता है और आज़ाद भारत में लोकतंत्र गाँव से ही स्थापित होगा। अंतिम व्यक्ति के आँखों के आँसू पोछने की कल्पना आज़ाद भारत के 78 वर्ष बाद भी कल्पना ही रह गयी।हमारा गाँव हमारे राज्य की कल्पना साकार नहीं हो सकी और गाँव सभा के नैसर्गिक अधिकार को राष्ट्रहित विकास ब्यापार व लाभ के नाम पर उनसे छीन लिया गया है।मेरी राय में नैसर्गिक अधिकार वाले सीधे सादे ढाँचे में अधिकार प्रदान करने वाली बेतुकी है क्योंकि ग्राम सभा सार्वभौम सत्ता की वास्तविक दावेदार है।स्वामी सह्जानंद सरस्वती ने वर्ष 1941 में हज़ारी बाग़ की जेल में लिखा था कि यदि यही हालत बने रहे तो कम से कम सत्तर साल बीतते न बीतते सभी किसी बिना ज़मीन के हो जाएँगे।
श्री मिश्र ने कहा कि आज वैश्वीकरण के नए दौर में स्थानीय / पंचायत के सम्बंध में नये दृष्टिकोण से विचार करना पड़ेगा। भारत का गाँव समाज आज भी अपनी आजीविका के लिए स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल , जंगल , ज़मीन , खेती, बाडी , पशु पालन आदि पर निर्भर है। जबकि आज का वैश्विक अर्थ जगत उक्त संसाधनों को जिन पर ग्राम वासियों का नैसर्गिक अधिकार होने चाहिए थे , उनसे छीनने के लिए दबाव बढ़ रहा है। इन्ही वैश्विक अर्थ जगत के दबावों के कारण हमारे संस्कार प्राकृतिक संसाधनों जैसे कृषि , जल , वन , पर्यावरण इत्यादि नयी नीतियाँ बनाने का दौर चल रहा है।वित्तीय दस्तावेज़ों के द्वारा उक्त प्राकृतिक संसाधनों पर से स्थानीय जनता का उपभोग और नियंत्रण के अधिकार को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों पर नैसर्गिक अधिकार के बिना पंचायतें गांधी के स्वावलंबी व स्व राज़ी ग्राम स्वराज के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकती हैं।
दूसरा बड़ा प्रश्न भारतीय समाज को धरोहर में मिली जाति प्रथा और सामंती मानसिकता का है। आज भी हम दलितों , असहायों , महिलाओं , आदिवासियों तथा धार्मिक अल्प संख्यकों को अपने ही गाँव में समानता व न्याय देने में सफल नहीं हो सके हैं। लोकतांत्रिक आचरण तथा न्याय का कार्य करने में पंचायतें सक्षम नहीं हो पायी हैं।इन दो मूल कार्यों के अभाव में ग्राम पंचायतें मात्र विकास पंचायत बन कर रह गयी हैं जो ऊपर की सरकारों से प्राप्त धन खर्च करती हैं।
सम्मेलन के मुख्य अतिथि श्री अशोक सिंह जादोन जी अध्यक्ष , अखिल भारतीय पंचायत परिषद ने कहा कि भारतीय संविधान की धारा -243-जी के अंतर्गत 73वें संविधान संशोधन के बाद यह माना गया है कि पंचायत गाँव में स्वशासन की इकाई के रूप में कार्य करेंगी। राज्य सरकारें ऐसे क़ानून बनाएँगी जिससे पंचायतें अपने आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय की योजनाएँ बना सकेंगी तथा संविधान की 11 अनुसूची में शामिल समस्त आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय के कार्यों को क्रियान्वित करेंगी।
वास्तविकता यह है कि आज तक पूरे देश में राज्य सरकारों ने 11वीं अनुसूची में वर्णित कार्यों की स्पष्ट कार्य सूची[Activity Making]नहीं बनाई हैं। इस लिए पंचायत योजना का दायरा क्या होगा तय नहीं है।
श्री जादोन ने कहा कि भारत सरकार का हर मंत्रालय तथा राज्य सरकारों के विभाग पंचायतों को कार्य थोप रहे हैं जो उन्हें अपने लिए मुश्किल व अनुपयोगी लगते हैं। जबकि पंचायतों के पास उन कार्यों को पूरा करने के लिए न तो कर्मचारी न ही ढाँचा तथा न ही धन है। इस प्रकार ग्राम पंचायत केंद्रीय तथा राज्य सरकार की स्थानीय स्तर पर कम खर्च में काम निपटाने की एजेंसी ( विभाग ) बन कर रह गयी है और ग्राम प्रधान / सरपंच को ठीकेदार बना दिया गया है जबकि महिला प्रधान के बजाय प्रधान पति अधिक क्रियाशील दिखते हैं।
73 वे संविधान संशोधन द्वारा प्रदत्त वास्तविक कार्य , धन ,कर्मचारी - ढाँचा तथा सशक्त ग्राम सभा [Function , Fund ,Functionary , Facilities, And Empowered, Gram Sabha ] के अभाव में पंचायत आज स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में कार्य करने में सक्षम नहीं हो सकती है।73वें संविधान संशोधन के तहत हमारे देश में आज तीन स्तरों पर संवैधानिक सरकारें हैं। केंद्रीय सरकार , राज्य सरकार तथा पंचायत सरकार है लेकिन इनमे जीवंत सम्बंध स्थापित करने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
श्री अशोक सिंह सेंगर , अध्यक्ष , मध्य प्रदेश पंचायत परिषद ने सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रदेश सरकार से अपेक्षा है कि पंचायतों के सशक्ति करण के लिए अलग से बजट प्रदान करे।
श्री महेंद कुमार यादव जी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय पंचायत परिषद ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए सम्मेलन में अधिकांश सरपंचों की ओर से उठाये गए मुद्दों के समाधान के लिए संगठित होकर अनशासित आंदोलन चलाने की अपील किया।
सम्मेलन को डाक्टर विजय पाटीदार प्रतिनिधि जिला पंचायत अध्यक्ष मंदसौर, श्री महेंद्र सिंह बुंदेला राष्ट्रीय सचिव अखिल भारतीय पंचायत परिषद दिल्ली, श्रीमती प्रीती सिंह राठौर प्रदेश अध्यक्ष महिला मोर्चा, बद्रीदास बैरागी जी प्रदेश महासचिव, हेमराज चौहान प्रदेश संगठन मंत्री, हिम्मत सिंह गोयल, प्रदेश उपाध्यक्ष श्री अजय गोटिया प्रदेश उपाध्यक्ष पुष्पेंद श्री देशमुख प्रदेश महासचिव,श्री सुरेन्द्र सिंह सोलंकी प्रदेश महासचिव, श्रीमती दीपा ठाकुर प्रदेश महासचिव महिला मोर्चा,सुधाकर पांडगरे प्रदेश कोषाध्यक्ष नरेंद्र सिंह चौहान प्रदेश प्रवक्ता, जिला अध्यक्ष वैभव विशेन बालाघाट, सुरेश पोरवाल जिला अध्यक्ष रतलाम, लाला गुर्जर जिला अध्यक्ष मंदसौर, श्री राम सिंह जिला महासचिव मंदसौर, श्री संतोष राय सीहोर ने संबोधित किया ।सम्मेलन में हजारों की संख्या में उज्जैन और इंदौर संभाग अंतर्गत 15 जिला के हजारों सरपंच गण शामिल हुए।
जय पंचायती राज के उदघोष के साथ सम्मेलन समापन की घोषणा की गई।