प्रशासन से आतंकित है अमरकंटक का साधू -- संत समाज

पर्यावरण संरक्षण को लेकर सर संघ चालक मोहन भागवत से जताई चिंता 
 
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प्रशासन से आतंकित है अमरकंटक का साधू -- संत समाज

अमरकंटक / अनूपपुर / अमरकंटक के लगभग सभी आश्रमों, मठों,मन्दिरों के समाज सेवी साधू - संत इन दिनों प्रशासन की कार्यवाही को लेकर आतंकित हैं। उनका आरोप है कि नर्मदा जी पर बांध बना कर जल ठहराव सुनिश्चित करके पहले तटों को विस्तार दिया गया और अब चालीस - पचास साल से यहाँ आध्यात्मिक, धार्मिक गतिविधियों में लगे साधू - संतों को कार्यवाही का भय दिखलाया जा रहा है। प्रशासन से डरे अमरकंटक के लगभग सभी साधू - संतों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालक डा मोहन भागवत के 30-31 मार्च 2024 को अमरकंटक प्रवास के दौरान आयोजित साधू संतो की विचार गोष्ठी में उन्हें एक पत्र सौंप कर उनका ध्यानाकर्षण किया।   साधू ,संतगणों ने अमरकंटक एवं नर्मदा संरक्षण पर अपने विचार रखते हुए कहा कि मां नर्मदा की प्राकट्य भूमि, संतो की साधना एवम् तपस्थली अमरकंटक में डा भागवत जी का हृदय की गहराइयों से स्वागत, नंदन, वंदन, अभिनंदन है। भगवान शंकर के नीलकंठ को अमरत्व प्रदान करने वाली यह धरा. अनादि काल से साधु संतो की तप व साधना स्थली रही है। यहां केआध्यात्मिक स्पंदन से अभिभूत होकर कपिल मुनि, ऋषि दुर्वासा, भगु आदि ने भी यहां तपस्या की है। आज भी इस नगर में अनेकानेक संत महात्मा निवास व साधना रत है। राज्य व स्थानीय प्रशासन उन्हें समय समय पर बारंबार, अनवरत उन्हें उद्वेलित और परेशान करता है, जबकि साधु संतों का सेवार्थ और परमार्थ ही आज इस मां नर्मदा की प्राकट्य भूमि को देश और दुनिया के नक्शे में पहचान देता है और धर्म प्रिय सनातनियों को यहां आकर्षित करता है।

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प्रशासन कर रहा परेशान--
पत्र के माध्यम से कहा गया कि कभी पर्यावरण के नाम पर, कभी मां नर्मदा से दूरी को लेकर, कभी लीज विस्तारीकरण आदि मुद्दो को लेकर यहां का संत समाज हमेशा प्रशासन से त्रस्त और भयाक्रांत रहता है। 2007 से पहले नर्मदा की जलधारा का स्वरूप अतिसीमित और सिकुड़ा हुआ था, तभी से संत इससे 100 मीटर और उससे ज्यादा दूरी पर आश्रम बनाकर उसमें निवासरत थे। विंध्य प्रदेश के समय यहां की भूमि सन् 1952 में टाऊन डेब्लपमेंट बोर्ड को दी गई थी। इस समय कई साधु संतों को तत्कालीन प्रशासन ने लीज पर जमीन आवंटित की। आज उन साधु संतों के भक्तों व अनुनायियों ने उनके निवास हेतु आश्रम बनवा दिये और आज भी अनेकानेक महात्मा वीरान जंगलों में निवास व साधना रत हैं। मध्य प्रदेश शासन के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने जलधारा से 30 मीटर और उससे अधिक मीटर दूर संतो को लीज पर जमीन का आवंटन किया। अब जिनकी लीज की समय सीमा समाप्त हो रही, उनके आवेदनों के बाद भी लीज का विस्तारीकरण नहीं किया जा रहा है।

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एनजीटी ने बढाया दायरा -
यहाँ के कुछ प्रमुख संतों ने चर्चा करते हुए बतलाया कि एनजीटी ने जलधारा से दूरी का दायरा 100 मीटर कर दिया, और राज्य व स्थानीय प्रशासन इसे कभी 200 और कभी 300 मीटर निर्धारित करता है। कालांतर मे स्टॉप डेम बनाकर नर्मदा की जलधारा को विस्तारित कर दिया गया, जो पाट पहले मुश्किल से एक सवा मीटर था, अब वह 200 से 250 मीटर है। अब उससे कभी 100 मीटर, कभी 200 मीटर, और कभी 300 मीटर के दायरे पर अवस्थित संत समाज को बारंबार विस्थापन का भय पैदा किया जाता है। बंदोबस्त भी की कई वर्षों से नहीं हुआ। जब जैसा शासन प्रशासन ने चाहा उसे परिभाषित किया जाता है। ऐसे भय के माहौल में साधु संतों की साधना, सेवार्थ और परमार्थ का कार्य बाधित होता है।

विधि सम्मत न्याय की मांग--
डा मोहन भागवत जी से कहा गया कि आप सनातन और राष्ट्रधर्म के ध्वज वाहक हैं, लगातार विचलित और भयग्रस्त यहां का संत समाज अपनी एवम् सनातन धर्म की अस्मिता के लिए आपसे प्रार्थना करता हैं कि कुछ माहों के अंतराल में बारंबार संत समाज को शासन प्रशासन के आतंक से यहां के इतिहास और कालांतर में किए गए जलधारा के पाट विस्तारीकरण को दृष्टिगत रखते हुऐ, विधि सम्मत तरीके से न्याय दिलायें। इस हेतु इस अंचल का संत समाज आपका ऋणी और आजन्म आभारी रहेगा।