( 27 फ़रवरी / चंद्रशेखर आजाद के पुण्य दिवस पर विशेष )

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शहीद मुल्क का इतिहास गढा करते हैं,
बच्चे बलिदानों की गाथाएं पढ़ा करते हैं,
फूल भगवान के चरणों में समर्पित होते हैं,
मां की गोदी में सदा शीश ही चढ़ा करते हैं।
शरीर हष्ट पुष्ट, गोल उभरा हुआ मुख मंडल, उन्नत शुभ्रा ललाट, रंग गोरा,आंखें बड़ी तेजवान, मूछे चढ़ी और एठी हुई, यह थे चंद्रशेखर आजाद। चंद्रशेखर सचमुच में चंद्रशेखर थे, वह चंद्रशेखर की तरह ही तेजवान थे। वें क्रांतिकारियों के सिरमौर थे। अपने ही हाथों से अपना रक्त तिलक करने वाले अल्फ्रेड पार्क के नायक क्रांतिकारी मंत्र दृष्टा चंद्रशेखर आजाद के चरणों में नमन करता हूं।
ग्राम वदरका वह पवन स्थल है जहां माता जगरानी देवी की कोख से 23 जुलाई 1906 को पिता पंडित सीताराम तिवारी के घर में चंद्रशेखर आजाद जैसे स्वतंत्रता के महान उपासक का जन्म हुआ था। आजाद का जीवन धधकते अंगारे सा तेजोमय और शुभ्र ज्योत्सना सदृश उज्जवल व पवित्र था। देश की आजादी के लिए क्रांतिकारियों के मुकुट मणि चंद्रशेखर आजाद ने 27 फरवरी 1931 शुक्रवार के दिन मातृभूमि की आजादी के पावन यज्ञ में अपने गरम लहू की जो आहुति दी थी उसकी तपिस व महक इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क की माटी में आज भी उस शाहिद की गौरव गाथा सुनाई प्रतीत होती है।वीरमाता जगरानी देवी ने जो संस्कार दिया था जिसके कारण वह निर्भीक साहसी और अंग्रेजों के अंदर कपकपी व धड़कन पैदा करने वाला वाराणसी में वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के समय जब आजाद कक्षा 5 में पढ़ते थे ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जुलूस निकालकर नारे लगाते हुए और सिपाही को पत्थर का निशाना बनाने की जुर्म में न्यायाधीश खेरघाटी के सामने उपस्थित किया गया तो जज ने पूछा तुम्हारा नाम क्या है? 'आजाद'..बालक चंद्रशेखर ने निर्भरता पूर्वक कहा। पिता का नाम? 'स्वाधीन' आजाद ने तनकर कहा।तुम्हारा घर कहां है? 'जेलखाना' आजाद ने गर्जना के साथ कहा। जज आश्चर्य चकित रह गया।वह समझ गया कि जिस देश में ऐसे वीर बालक हैं उसे अधिक दिनों तक गुलाम नहीं रखा जा सकता। न्यायाधीश ने 15 वर्ष के बालक को 15 बेतो की सजा सुनाई,उनके शरीर पर बेत लग रहे थे और मुख से बार-बार निकल रहा था भारत माता की जय। वे जब जेल से विद्यापीठ वापस गए तो विद्यापीठ के मुख्य अध्यापक श्री संपूर्णानंद जी ने उन्हें आजाद नाम से पुकारा क्योंकि अदालत में उन्होंने अपना नाम आजाद ही बताया था तभी से देश में चंद्रशेखर के नाम के साथ आजाद जुड़ गया।
चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल प्रयागराज संग्रहालय में संग्रहित की गई है। अल्फ्रेड पार्क में जहां आजाद शहीद हुए थे उस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क कर दिया गया है और यही उनके शहादत स्थान पर आजाद की विशाल मूर्ति प्रतिस्थापित की गई है। लेखक को संग्रहालय के निदेशक डॉक्टर एस के शर्मा ने दिखाया कि हमारे संग्रहालय में आजाद की पिस्टल प्रदर्शित की गई है जिसे उन्होंने ब्रिटानिया सरकार से लोहा लिया था। उन्होंने बताया कि कोल्ट नामक 32 बोर की पिस्टल को जिस पर स्मोकलेस रिमलेस लिखा हुआ है और इसका निर्माण अमेरिका में हुआ है। डॉ शर्मा ने लेखक को बताया कि यह पिस्तौल पहले लंदन में थी बाद में हिंदुस्तान लाने के बाद इसे लखनऊ के राज्य संग्रहालय में रखा गया फिर प्रयागराज के साथ ऐतिहासिक संबंध और यहां के लोगों की मांग के बाद इसे यहां लाया गया।
एक दिन भारतीय स्वतंत्रता के दो जगमगाते नक्षत्र भारत की आजादी के दो दीवाने स्वतंत्रता के साधक श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के घर पर एकत्र हुए। भगत सिंह विद्यार्थी जी के प्रताप अखबार के लिए बलवंत के नाम से काम कर रहे थे,और वहां मोटे तगड़े पंडित जी पहुंच गए। जब विद्यार्थी जी ने परिचय करवाया तो हर्षा तिरेक में बलवंत आजाद की ओर बढ़े। ओह क्रांतिकारी पुरुष पंडित चंद्रशेखर आजाद।आजाद ने भगत सिंह को गले लगाते हुए कहा वह भाई वह खूब मिले मुझे तुम्हारी ही तलाश थी। 9 अगस्त 1925 को पैसेंजर गाड़ी से सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनी। लखनऊ से पहले काकोरी के निकट जंजीर खींच कर गाड़ी को रोक कर खजाना लूट लिया गया। इस कांड में बिस्मिल के अतिरिक्त 9 क्रांतिकारी में चंद्रशेखर आजाद ठाकुर रोशन सिंह राजेंद्र नाथ लाहिड़ी तथा अशफाक उल्ला खान को क्रमशः 19 दिसंबर 1927 को गोरखानपुर में, 18 दिसंबर को इलाहाबाद जेल में, 17 सितंबर को गोंडा जेल में, 19 दिसंबर को फैजाबाद में फांसी दी गई। चंद्रशेखर आजाद को जिंदा या मुर्दा पकड़वाने के लिए ₹30000 के इनाम की घोषणा की। आजाद ने भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए दुर्गा भाभी को महात्मा गांधी के पास भेजा परंतु गांधी जी ने उन्हें कोरा जवाब दे दिया। गणेश शंकर विद्यार्थी की सलाह पर प्रयागराज गए और जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनंद भवन में भेंट की।आजाद मिलने के बाद दुखी होकर बाहर चले आए। 27 फरवरी 1931 शुक्रवार का दिन लगभग 10:00 बजे चंद्रशेखर आजाद अपने मित्र सुखदेव राज के पास से क्रांतिकारी का पैसा लेने गए थे तभी उन्ही के दल का एक देशद्रोही वीरभद्र तिवारी ने पैसों के लालच में पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस के आते ही आजाद ने सुखदेव राज को पुलिस घेरे से तो निकाल दिए किंतु वह नहीं निकल पाए। सीआईडी विभाग का अधीक्षक नाटबाबर तथा भारतीय इंस्पेक्टर ठाकुर विश्वेश्वर सिंह ने एक पेड़ को लक्ष्य बनाकर गोलियां चला रहे थे। 25 वर्ष का गठीला बदन एक नौजवान जिसके हाथ में एक पिस्तौल थी उसका निशाना अचूक था। एक गोली नाटबाबर को दाहिने हाथ को पर कच्चे उड़ा दिए। दूसरी गोली से ठाकुर विश्वेश्वर सिंह का जबड़ा तोड़ दिया।नौजवान अपनी पिस्तौल की गोलियों का हिसाब रख रहा था जब पिस्तौल की अंतिम गोली बची तो आजाद ने माउजर अपनी कनपटी में लगाकर पिस्तौल का घोड़ा दबा दिया। इस तरह चंद्रशेखर आजाद ने पुलिस द्वारा कभी ना पकडे जाने का आजाद है और आजाद ही रहेंगे कि अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली। तीर्थराज प्रयाग की धरती इसीलिए धन्य है कि देश के सर्वोच्च क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को यहां की पावन भूमि पर ही बलिदान देना पड़ा था। आजाद की जन्म भूमि बदरका एक गांव मात्र नहीं है बदरका एक महातीर्थ है,हजारों तीर्थ से भी अधिक पवित्र यह वह महातीर्थ है जहां की रज का कण कण बंदनीय है। जहां की इंच इंच धरती में आजाद ही रहे हैं आजाद ही रहेंगे की ध्वनि आज भी सुनाई देती है।उस क्रांतिकारी शहीद के पूर्ण दिवस पर शत-शत नमन
"स्वतंत्र समर के सेनापति, निर्भय सेनानी को प्रणाम,
जिसको दुश्मन तक छू ना सके,ऐसे बलिदानी को प्रणाम"
( लेखक/चिंतक
इंजी. राजेन्द्र पाण्डेय )