आजाद भारत का 22 वां दिल्ली - दरबार

आजाद भारत का 22 वां दिल्ली - दरबार
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आजाद भारत का 22 वां दिल्ली - दरबार

भारत में लोकतंत्र जीवित है। संविधा थेन पर खतरे मौजूद हैं लेकिन वो भी जीवित है और इसी संविधान कोई कसमें खाकर 9  जून 2024 को दिल्ली में देश का 22वां दरबार एक बार फिर सज गया है। देश ने इस लम्बे काल खंड में दरबार सजाते अभी तक कुल 15 चेहरे देखे हैं। इनमें से गुलजारी लाल नंदा का चेहरा भी है, लेकिन नंदा ने कभी कोई दरबार सजाया नहीं। वे दरबार को सम्हाले जरूर रहे। उन्हें दो मर्तबा दिल्ली दरबार की चौकीदारी का मौक़ा मिला । पहली बार 11  दिन और दूसरी बार 13  दिन। उनकी बराबरी केवल एक बार अटल बिहारी बाजपेयी ने की थी ,क्योंकि उनके पास पूर्ण बहुमत नहीं था।

दिल्ली में दरबारों को सजते और उजड़ते इस देश ने लगातार देखा है। आजाद भारत में पहला देशी दिल्ली दरबार पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सजाया। ये बात मेरे जन्म से पहले 1951 की है। इन्होने लगातार १९५७ और १९६२ में भी दरबार सजाया लेकिन उन्होंने बीच में ही इस दरबार से मुश्तकिल छुट्टी ले ली। उनका दरबार सबसे अनूठा था। पंडित जी के बाद गरीब देश के गरीब जन नेता लाल बहादुर शास्त्री जी को दिल्ली दरबार सजाने की जिम्मेदारी मिली। वे केवल 216 दिन ही दिल्ली दरबार के अलमबरदार बने रह सके । उन्हें भी अचानक दिल्ली दरबार से रुखसत लेना पड़ी।

देश में पांचवां पूर्णकालिक दिल्ली दरबार सजाया श्रीमती इंदिरा गाँधी ने । वे पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुत्री थीं। इंदिरा जी ने 67 ,69 और 1974 में दिल्ली दरबार की सदारत की। इंदिरा गांधी ने देश में पहली बार आपातकाल लगाया फलस्वरूप 1977 के आम चुनाव में देश की जनता ने उन्हें पदच्युत कर दिल्ली दरबार सजाने की जिम्मेदारी मोरारजी भाई देसाई को सौंप दी। देसाई जी ने पांच साल पूरे होने से पहले ही हाथ खड़े कर दिए । नतीजा ये हुआ कि उनका दरबार ढाई साल में ही उठ गया। देसाई जी के दरबार में रौनक कम तनाव कुछ ज्यादा ही रहा, नतीजन  उन्होंने चौधरी चरण सिंह को अपना उत्तराधिकार सौंप दिया। चौधरी साहब कुल 170  दिन ही दिल्ली दरबार को सम्हाल पाए। अपना-अपना नसीब जो ठहरा।
चौधराहट नाकाम होने के बाद 1980 में फिर चुनाव हुए और  देश की जनता ने एक बार फिर दिल्ली दरबार सजाने की जिम्मेदारी श्रीमती इंदिरा गाँधी को दे दी। वे पूरे समय दिल्ली दरबार चलातीं लेकिन बीच में ही कुछ सिरफिरों ने उन्हें गोलियों से भून दिया ,फिर चुनाव हुए और दिल्ली दरबार के नए शहंशाह बने इंदिरा गाँधी के लख्ते जिगर राजीव गांधी। राजीव गांधी को उनके ही सहयोगी वीपी सिंह ने धकिया दिया और साल 1989 में वे दिल्ली दरबार के मालिक बन गए लेकिन जो उन्होंने राजीव गांधी के साथ किया वैसा ही उनके साथ हुआ, उन्हें दरबार सजाने के लिए कुल 343 दिन ही नसीब हुये। वे गए तो 1990 में चंद्रशेखर साहब आये। वे भी कुल 223 दिन ही दिल्ली दरबार के मुखिया रह पाए । 1991 में पीव्ही नरसिम्हाराव को दिल्ली दरबार सजाने का मौक़ा मिला। दरबार तो सजाना था राजीव गांधी को । राव साहब ने पूरे पांच साल बड़े आराम से पूरे किए। 

साल 1996 में चुनाव हुए तो हमारे ग्वालियर वाले अटल बिहारी बाजपेयी को दिल्ली दरबार सजाने का मौक़ा मिला लेकिन वे 13  दिन में ही नाकाम हो गए। उनके बाद एच दी देवगौड़ा साहब को 324 दिन के लिए दिल्ली दरबार की कमान मिली । उनके बाद 97 दिन के लिए इंद्र कुमार गुजराल ने दिल्ली दरबार को गुलजार करने की कोशिश की। 1998 में दूसरी बार अटल बिहारी बाजपेयी को दिल्ली दरबार ने आमंत्रण दिया। इस बार उन्होंने पूरी हिकमत अमली से काम लिया और अपना पूरा कार्यकाल पूरा कर दिखाया। साल 2004  में डॉ मनमोहन सिंह ने अटल जी को दिल्ली दरबार से बाहर कर दिया और पूरे दस साल 2014 तक दिल्ली दरबार को नयी सजधज दी।

दिल्ली दरबार सजता और उजड़ता रहा। दिल्ली दरबार ने एक से बढ़कर एक नमूने देखे। लेकिन 2014 में दिल्ली दरबार एक ऐसे नेता के हाथ में आया जो प्रक्षेपित किया गया था । इस नेता का नाम था नरेंद्र दामोदर दस मोदी। मोदी ने अच्छे दिन  आने का नारा देकर जनता को लुभाया था । मोदी ने 2019 में भी जनता को अपनी मोहनी से लुभा  लिया  और 2024 में भी दिल्ली दरबार पर अपना कब्जा कायम रखा। हलांक उनकी ताकत लगातार कम होती गयी।  मोदी जी ने पूरे 10 साल 15 दिन दिल्ली दरबार को सजाया, संवारा और ऐसे -ऐसे करतब दिखाए जो पहले कभी देश वासियों ने नहीं देखे थे। उनके कार्यकाल में देश की मुद्रा बदली गयी थोक में सांसदों का निलंबन हुआ । संसद ध्वनिमत से चलाई गयी। देश की सियासत को अदावत के रंग में डुबो दिया गया। नए राज्य बनाने के बजाय पुराने राज्य कश्मीर के तीन टुकड़े कर दिए गये । धारा 370 हटी, राममंदिर बना, नारी शक्ति वंदन क़ानून बन। तीन तलाक कानून बने। कैसे बने ये अलग कहानी है।

मोदी जी ने 9 जून 2024 को तीसरी बार दिल्ली दरबार सजाया है । इस बार उनके दरबार में बहुत से नए चेहरे है।  नए सहयोगी हैं। कुछ पुराने चेहरे भी हैं ,जिनका होना मोदी जी की जरूरत भी है और मजबूरी भी। पहली बार मोदी जी को दरबार सजाने में असुविधा हुई है। उन्हें खुलकर खेलने का मौक़ा नहीं मिला है। उनकी कार के ब्रेक पर किसी और का पैर है तो एक्सीलेटर पर किसी और का । उनके हाथ में केवल  स्टेयरिंग है । लेकिन वे खुश है। उनका दावा है कि वे 22 वीं बार सजने वाले दिल्ली दरबार को समय से पहले उजड़ने नहीं देंगे। लेकिन समय किसने देखा है ? हम तो चाहेंगे  कि वे अपना दरबार  पूरे समय  सजाकर  रखें और उनका हश्र मोरारजी देसाई या अटल जी जैसा न हो। इस बार उनके साथ पहले जैसे ग्रह नहीं हैं। इस बार उनके दिल्ली दरबार पर सूतक लगा है।  राहु-केतु उनके दोनों और हैं। इनसे मोक्ष पाए बिना दिल्ली दरबार को पूरे समय सजाकर रखना आसान काम नहीं है । ईश्वर मोदी जी को सामर्थ्य दे।  
@ राकेश अचल
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