प्रधानमंत्री से मुख़ातिब हूँ या पूँजीपतियों के एजेंट से......
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चौधरी साहब ने मुरार जी से कहा देश के
दिल्ली। आज 23 दिसम्बर को भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह जी की जन्म जयंती है ,लेकिन किसान घाट कुछ वीरान है और सरकार भी मौन है। चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में व्यतीत यादगार पलों का स्मरण हो आया, उसकी चर्चा करना आवश्यक समझता हूँ।परम देश भक्त संगो पांग चरित्रवान एवं ईमानदार चौधरी साहब को कोटिशः नमन ।
हमारे देश भारत की सत्ता पर सदा से पूंजीपतियों का धनबल से क़ब्ज़ा रहा है, रही गुजरात लॉबी और शेष सम्पूर्ण किसान नेतृत्व में नीतिगत कुश्ती होती रही है, 2014 के बाद पूंजी पतियों का देश की सत्ता पर पूरी तरह से कब्जा हो चुका है,और षडयंत्रो से किसान नेतृत्व को लगभग बिल्कुल खत्म सा किया जा चुका है,आज संसद भवन में हमारा प्रतिनिधित्व शून्य के बराबर है, लेकिन विगत वर्षी में कुछ महीनों के लिए दिल्ली के सिंहासन पर किसानों की तूती भी बोली थी,जब तत्कालीन मेरठ जनपद के हापुड़ तहसील के गांव नूरपुर मढ़ैया से निकलकर लाल किले की प्राचीर से गरीब मजदूरों-किसानों के मसीहा ने राष्ट्र को सम्बोधित किया था- 15 अगस्त 1979 को जब गरीब किसान की झोंपडी से निकल कर प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे धरती के लाल, किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह ने लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित किया था। लगभग 50 मिनट के संबोधन में 30 मिनट तक वह गांव, खेत - खलिहान, व किसान की दुर्दशा पर बोले थे।
आंकडों के गणित से आजादी के बाद से किसानों के साथ होता आया पक्षपात व कांग्रेस की एक एक उस नीति का इतिहास देश की जनता के सामने उजागर किया था जिससे किसान - मजदूर, मेहनतकश वर्ग व बडे उद्योग घरानों के बीच गरीबी व अमीरी की खाई बढती जा रही थी।
चौधरी साहब ने किसानों को चेताते हुए कहा था कि 100 बीघे जमीन के किसान की खेती की आमदनी से ज्यादा एक चाय की दुकान चलाने वाला कमा लेता है, अर्थात आप सारे घर के सदस्य खेती में ही लगे रहोगे तो परिवार का गुजारा नहीं होगा। अत: कुछ सदस्यों को अन्य रोजगार करना चाहिए। आने वाले समय में नौकरी के भी लाले पड जायेंगे।
चौधरी साहब जीवन भर किसानों की लडाई लडते रहे । बहुत सारे कानून बनाये, तत्कालीन राजे रजवाडे से भरी कांग्रेस से किसानों- मजदूरों के हितों में कानून लागू कराने में कठोर संघर्ष किया था।
एक घटना का विवरण प्रस्तुत करना चाहता हूँ यह तबकी बात है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मुरारजी देसाई ने उन्हें केन्द्रीय ग्रहमंत्री पद से हटा दिया, तब लोक बंधु राज नारायण के आवाहन पर हरियांणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ देवीलाल ने चौधरी साहब के मना करने के बावजूद भी 23 दिसम्बर 1978 को चौधरी साहब के जन्म दिन पर दिल्ली वोट क्लब के मैदान पर विराट रैली की थी। केंद्रीय मंत्री छोटे लोहिया श्री जनेश्वर मिश्र ,उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री राम नरेश यादव , बिहार के मुख्य मंत्री श्री कर्पूरी ठाकुर, उडीसा के मुख्यमंत्री श्री बीजू पटनायक, पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल व राजस्थान के धुरंधर नेता श्री कुम्भाराम आर्य, दौलत राम सारण व मनीराम बागडी आदि ने पूरे देश के किसान बिरादरी का दिल्ली में ऐतिहासिक जमावडा लगा दिया तो मुरारजी देसाई ने चौधरी साहब को बाबू जगजीवन राम के साथ पहली बार दो उपप्रघान मंत्री बना कर चौधरी साहब को वित्त मंत्री तथा जगजीवन राम को रक्षा मंत्री बना दिया था।
चौधरी साहब को पहली बार देश का बजट बना कर संसद में पेश करने की जिम्मेदारी मिली थीं। सारा उद्योग जगत व बडा व्यापारी वर्ग घबराया हुआ था क्योंकि चौधरी चरन सिंह द्वारा बजट बनाने के परिणाम से वह भलीभांति परिचित थे। चौधरी साहब उद्योगपतियों व बडे व्यापरियों की अजगरी आय का बखान हर मंच से करते थे।
देश के बडे-बडे धनाड्य पूंजीपति चौधरी साहब से भेंट करने के लिए सब नेताओं व छुटभैये नेताओं से प्रयास कर रहे थे कि उन लोगों को समय दिलवा दें, मगर किसी नेता की मजाल थी जो चौधरी साहब तक उनकी अरदास पंहुचा दे। चौधरी साहब ने वित्त मंत्रालय के अंदर खास अफसरों को लेकर फाटक बंद करवा दिया था और निर्देशित किया था की उनकी आज्ञा के बिना अंदर परिंदा भी नहीं जा सकता था। हताश-निराश होकर भारत के सारे बडे लोग प्रधानमंत्री मुरारजी देसाई के पास पहुंचे और उनसे अपनी व्यथा बताई।
आज तक भी भारत में परम्परा चली आ रही है कि वित्त मंत्री पूंजिपतियों की सलाह से बजट तैयार करते हैं क्योंकि उन्ही लोगों के चंदे से मिले धन पर चुनाव लडे जाते हैं, तो उसका पुरस्कार भी जनता के बजट में चुकाते हैं । लेकिन चौधरी साहब तो चुनावी जनसभाओं में किसानों से चंदा मांगते हुए कहते थे कि - " आप आवश्यकतानुसार चंदा नहीं दोगे ? और मजबूरी में मेरा हाथ किसी दिन किसी पूंजिपति के आगे फैल गया तो फिर आपकी वकालत कोन करेगा " ?
प्रधानमंत्री मुरारजी देसाई ने चौधरी साहब को फोन करके कहा - " चौधरी साहब आप व्यवसायियों और पूजीपतियों के प्रतिनिधि मंडल से मिलकर उनकी बात सुन लीजिए और जो आवश्यक हो बजट में समावेश कर लीजिए। देश पू्जीवाद के सहारे ही आगे बढता है " ।
चौधरी साहब ने पलट कर सवाल पूछ लिया - " मैं देश के प्रधानमंत्री से मुखातिब हूं या पूंजिपतियों के समर्थक एक पूंजिपति नेता से ? बजट मैं, अपनी मर्जी से व अर्थ शास्त्रियों के सलाह से तैयार कर रहा हूं, आप सन्तुष्ट न हों तो स्वयं तैयार कर लीजिए " ।
ज्ञातव्य है कि मुरारजी भाई देसाई भी एक गुजराती बडे उद्योगपति थे। उनकी सूरत और मुम्बई में कई बडी कपडा मिलें थीं। किसान मसीहा चौ चरण सिंह का पलटवार तीखा सवाल सुनकर मुरार जी तिलमिला कर रह गये। चौधरी साहब ने देश के इतिहास में पहली बार बजट में गांव गरीब खेती और लघु कुटीर उद्योग के लिए 60 ℅ बजट प्रस्तावों का प्रावधान किया था ।
ऐसे किसान नेता थे चौधरी चरण सिंह। वह कहते थे कि :-
"देश की खुशहाली का रास्ता खेतों और खलिहानों से होकर गुजरता है" किसानों की कमर हमेशा से पूंजीपतियों का प्रतिनिधित्व करती जमाखोरों,काला बाज़ारियों, मिलावट खोरों की गुजरात लॉबी के दबाब में बनी सरकारी नीतियों से टूटती रही है, लेकिन पहले किसानों का पक्ष मजबूती से रखने वाले कुछ धुरंधर संसद में मौजूद होते थे,किन्तु आज कोई एक भी सांसद किसानों की आवाज मजबूती से संसद में रखने का साहस नही करता है।
जय किसान, जय पंचायती राज ।
शीतला शंकर विजय मिश्र
23-12-2024