कपास की खेती किसानों के लिए है फायदे का सौदा, इस प्रकार खेती करेंगे तो दोगुना होगी पैदावार
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कपास की खेती किसानों के लिए है फायदे का सौदा, इस प्रकार खेती करेंगे तो दोगुना होगी पैदावार
कपास भारत में महत्वपूर्ण कृषि उपज में से एक है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। आज हम बात करते हैं कपास की उन्नत खेती की। कपास एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है। कपास को बाज़ार में बेचने पर किसानों की अच्छी कमाई हो जाती है। जिस कारण उनकी आर्थिक हालत में काफी सुधर आता है। आज इसकी पैदावार भारत के ज्यादातर हिस्सों में की जा रही है। तो आइये समझते हैं कपास की खेती करने की पूरी प्रोसेस को।
कपास की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
कपास की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी और काली मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस तरह की मिट्टी में कपास की पैदावार ज्यादा होती है। इसके लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 6 तक होना चाहिए। कपास की फसल को मई माह में ही लगाया जा सकता है। फसल के उगने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेंटीग्रेट और अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 32 से 34 डिग्री सेंटीग्रेट होना उचित है। कपास के लिए कम से कम 50 सेंटीमीटर वर्षा का होना आवश्यक है।
खेत की तैयारी
कपास की बुवाई से पूर्व दो बार पलेवा की आवश्यकता होती है। पहला पलेवा लगाकर मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई (20-25 सेमी.) करनी चाहिए। दूसरा पलेवा कर कल्टीवेटर या देशी हल से तीन-चार जुताइयां करके खेत तैयार करना चाहिए। उत्तम अंकुरण के लिए भूमि का भुरभुरा होना आवश्यक हैं।
कपास की बीज दर
कपास की बीज दर प्रति एकड़ पौधों/फसल की दूरियों पर निर्भर करता हैं। 2 पैकेट प्रति एकड़ या 900 ग्राम बीज प्रति एकड़ अनुसार बिजाई करें।
कपास की खेती में बुवाई
कपास की कई प्रजातियाँ हैं. इन सभी प्रजातियों को खेत में अलग अलग तरीके से उगाया जाता है। बीज को खेत में लगाने से पहले बीज को उपचारित कर लेना चाहिए। जिससे कीटों से लगने वाले रोग कम लगता है। कपास की बुवाई हल के पीछे कूंड़ों में की जाती है। ट्रैक्टर द्वारा बुवाई करने पर कतार से कतार की दूरी 67.5 सेमी. व पौध से पौध की दूरी 30 सेमी. तथा देशी हल से बुवाई करने पर कतारों के मध्य की दूरी 70 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी. हो।
कपास की खेती में सिंचाई
कपास की खेती को काफी कम पानी जरूरत होती हैं। अगर बारिश ज्यादा होती है तो इसे शुरूआती सिंचाई की जरूरत नही होती। लेकिन बारिश टाइम पर नही होने पर इसकी पहली सिंचाई लगभग 45 से 50 दिन बाद या जब पत्तियां मुरझाने लगे तब कर देनी चाहिए।
कपास की चुनाई और भण्डारण
इस बात का ध्यान देना आवश्यक है कि ओस हटने के पश्चात् ही चुनाई की जाये। चुनाई करते समय पूर्ण खिले हुए गूलरों की ही चुनाई की जाये। इसका भण्डारण भी अर्ध खिली हुई व कीटों से प्रभावित कपास से अलग रखा जाये। चुनाई के साथ सूखी पत्तियां डन्ठल नहीं आने चाहिए।साभार - betul samachar