सरकार मूलतः अनुत्पादक संस्था है ? ....शीतला शंकर विजय मिश्र

सरकार मूलतः अनुत्पादक संस्था है ? ....शीतला शंकर विजय मिश्र 
 
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सरकार मूलतः अनुत्पादक संस्था है ? ....शीतला शंकर विजय मिश्र

दिल्ली। विचारणीय तथ्य यह कि आप बीएसएनल के कार्यालय में जाते हैं, लौट कर बीएसएनल के कर्मचारियों को गाली देते हैं,आप एसबीआई के कार्यालय में जाते हैं और लौट कर एसबीआई के कर्मचारियों को गालियाँ देते हैं, आप सचिवालय जाते हैं और लौट के सचिवालय के बाबू को गालियाँ देते हैं! फिर भी आपकी जिद है कि कम्पनी हो तो सरकारी हो, नौकरी मिले तो सरकारी मिले!

एसबीआई या बीएसएनल या सचिवालय का कर्मचारी कौन है?  हमारा- आपका ही छोटा या बड़ा भाई है, आप ही के चाचा मामा हैं, आप ही हैं. कोई ऐसा नहीं है जिसके परिवार में दो चार सरकारी कर्मचारी ना हों. आप उन्हें तो कामचोर या घूसखोर नहीं कहते...पर बाकी विभाग को कहते हो. क्या पूरे विभाग में सिर्फ एक हरिश्चंद्र था जो आपके हिस्से में आया ?
 
क्या आप बीएसएनल के कर्मचारी होते तो पूरा मन लगाकर, ईमानदारी और मेहनत से काम करते ? आप पूरे विभाग को, उसके वर्क-कल्चर को बदल देते ? जी नहीं! यह किसी व्यक्ति या विभाग की समस्या नहीं है समस्या यह है कि ये विभाग सरकारी हैं. और सरकार व्यापार  करने के लिए नहीं बनी है, सरकारी विभाग एफिशिएंट नहीं हो सकते,यह उनके मूल चरित्र के विरुद्ध है!

क्योंकि हर व्यक्ति अपने नियत इन्सेन्टिव स्ट्रक्चर को रिस्पॉन्ड करता है ,जो करने का रिवॉर्ड मिलता है वह करता है, जो करने पर दंड मिलता है वह नहीं करता है। जब दोनों में से कुछ नहीं मिलता तो कामचोरी को ही रिवॉर्ड गिनता है! यह समस्या व्यक्ति की नहीं है। समस्या उस कर्मचारी में नहीं है, उस संस्था में है जिसके लिए वह व्यक्ति काम कर रहा है। समस्या यह है कि ये संस्थाएँ सरकारी हैं और सरकारी तंत्र एफिशिएंट नहीं हो सकता, उत्पादन नहीं कर सकता,उस तंत्र में जाकर एक व्यक्ति को खुद उसके जैसा होने के अलावा और कोई उपाय नहीं है!

उत्पादन के साधनों पर जनता का अधिकार होना चाहिए, यह बात सुनने में बहुत आकर्षक लगती है,पर यह कहने वालों को इसकी समझ नहीं है कि उत्पादन के साधन हैं क्या ? उत्पादन के साधन सिर्फ कोयला- लोहा- पानी-बिजली नहीं है,ना ही उत्पादक सिर्फ वे मजदूर हैं जो भट्ठी में कोयला झोंकते हैं और हथौड़े से लोहा पीटते हैं ऐसा होता तो जापान एक धनी देश नहीं होता, और अफ्रीकी देश इतने गरीब नहीं होते !

उत्पादन का सबसे बड़ा साधन मनुष्य का मस्तिष्क है जो यह सोचता है कि उत्पादन किस चीज का करना है और कैसे सबसे अधिक एफिशिएंट तरीके से करना है। उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण साधन मनुष्य की उद्यमिता है जो उसके इन्सेन्टिव स्ट्रक्चर से एक्टिवेट होता है। इस साधन पर सरकार का अधिकार हो ही नहीं सकता। यह सिर्फ स्वतंत्र मनुष्य की स्वतंत्र बुद्धि में हो सकता है।

सरकार कोई भी हो इतने लोगों को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती। देश आगे निकल चुका है। पढ़ें लिखे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है। आज का दिहाड़ी मजदूर भी पढ़ा लिखा है। आपकों ही नहीं उसे भी सरकारी नौकरी चाहिए। सामंत शाही अब नहीं चलने वाली है। दो ही विकल्प उपलब्ध हैं,अपने- अपने राज्य सरकारों से सरकारी नौकरी मांगे, जो कि देने की किसी की औकात नहीं है। और दूसरा वो की सरकार से ही स्किल डेवलपमेंट जैसे सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा जाए। आपको सरकारी नौकरी यदि सरकार दे भी दे तो देश से बेरोजगारी दूर नहीं हो जाएगी। कहीं कभी किसी राज्य में हुईं हो तो बताइएगा। जो भी ये वादा कर रहा है वो सिर्फ बेरोजगारों को ठगने का प्रयास कर रहा है।

सरकार का काम नौकरियाँ देना नहीं है, सरकार सबको नौकरी दे ही नहीं सकती... क्योंकि सरकार मूलतः एक अनुत्पादक संस्था है, एक परजीवी संस्था है। सरकार टैक्स लेकर रोजगार नहीं दे सकती, रोजगार से टैक्स ले सकती है। सरकार उत्पादन नहीं करती...बैल दूध नहीं देता...बैल को दुह के कोई दूध नहीं मिलने वाला, चाहे बैल जर्सी नस्ल का ही क्यों न हो ? जयहिंद ।
एस एस विजय मिश्र 
17-01-2024