आस्था, आध्यात्म, आधुनिकता का महासंगम -- प्रयागराज महाकुंभ 2025

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( मनोज द्विवेदी ,अनूपपुर , मप्र )
प्रयागराज महाकुंभ 2025 के सफल आयोजन के लिये स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा कि इन 45 दिनों में सनातन धर्म का वैश्विक प्रसार हुआ है । भूतो ! ना भविष्यति .... ऐसा कभी हुआ है और ना तो भविष्य में होने की संभावना है। अद्भुत , अप्रतिम, अद्वितीय....इतने विशाल आयोजन की व्यवस्था में प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष सभी सहयोगियों की जितनी प्रशंसा की जाए , कम ही मानी जाएगी। विद्वान ,धर्माचार्य ,महा मण्डलेश्वर या किसी कथावाचक के लिये सैकड़ों वर्ष कहने, लिखने, बताने को बहुत कुछ है। महाकुंभ पर इतना कुछ किया , देखा ,बोला , सुना और पढा जा चुका है कि बहुत कुछ लिखने की इच्छा होते हुए भी शब्द नहीं मिल रहे कि पुनीत पावन नितांत सामाजिक , आध्यात्मिक , सनातनी परंपरा के ध्वजवाहक प्रयागराज महाकुंभ पर कैसे ,कहां से और क्या लिखें कि मेरे हृदय की भावांजलि मैया गंगा ,यमुना ,सरस्वती की त्रिवेणी में अर्पित हो जाएं।
दुनिया में युद्ध ...भारत में बुद्ध --- जब दुनिया के बहुत से छोटे बड़े देश युद्ध के मैदान में हों, विस्तारवाद और आतंकवाद का दैत्य मानवता को निगल जाना चाहता हो, अलग - अलग पूजा पद्धति को मानने वाले लोग तलवार और बारुद के बल पर अपने - अपने धर्म इतर अनुयायियों का नर संहार करने में जुटे हों , पिछले पांच साल में पहले कोरोना वायरस से करोड़ो लोग और फिर युद्ध से बहुत से देशों के लाखों सैनिक - असैनिक मारे गये हों, लाखों लोग घायल हो गये हों और करोड़ो लोगों ने पलायन कर लिया हो , वही दूसरी ओर देवभूमि भारत की स्थिति बिल्कुल अलग है। भारत में बिना बल प्रयोग , बिना प्रलोभन के सनातन धर्म की मानों बयार सी चल रही है। सर्वे भवन्तु सुखिन: के उद्दात्त भाव के साथ भारत में धर्म कर्म , दान पुण्य की श्रंखला सी चल रही है। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या जी में श्री राम लला के दिव्य - भव्य मन्दिर की स्थापना , काशी विश्वनाथ लोक,महाकाल उज्जैन लोक का विस्तार और अब प्रयागराज महाकुंभ 2025 के सफल आयोजन ने दुनिया भर के धर्मानुयायियो, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियो और राजनीतिकारों का ध्यान आकृष्ट किया है। दुनिया युद्ध की ओर अग्रसर है तो भारत बुद्ध के शांति ,धर्म, अध्यात्मिक मानववाद की राह पर चल रहा है।
त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान का टूटा रिकार्ड--
प्रयागराज, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार में प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित होने वाले महाकुंभ से प्रयागराज महाकुंभ 2025 का आयोजन कई मामलों में महत्वपूर्ण माना गया है। ग्रहों की गणना विशेषज्ञों ने इसे 144 साल बाद आने वाले महाकुंभ से पहले का महाकुंभ घोषित किया । जिसके कारण महाकुंभ त्रिवेणी पवित्र स्नान के लिये पधारने वाले करोड़ो ऋषि, मुनि, संत,आचार्य,महामंडलेश्वर ,विभिन्न अखाडों के नागा संत , भक्त, जपी, तपी, श्रद्धालुओं , धार्मिक पर्यटकों की सेवा के लिये प्रयागराज को अपना हृदय विशाल करना होगा। परम पावन प्रयागराज की धरा और यहाँ के गणमान्य लोगों ने महाकुंभ को सफल बनाने के लिये बडे मन और बडे हृदय का परिचय दिया है। महाकुंभ
की वृहद तैयारी के लिये केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ योगी सरकार ने व्यापक तैयारियां की। उम्मीद थी कि 45 दिन के महाकुंभ में 40 करोड़ श्रद्धालु - धार्मिक पर्यटक प्रयागराज पहुंचेगें। लेकिन 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी में पवित्र स्नान करने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा 7.5 करोड़ को पार कर गया। 13 जनवरी पौष पूर्णिमा को प्रथम स्नान के साथ 14 जनवरी मकर संक्रांति, 29 जनवरी मौनी अमावस्या, 3 फरवरी बसंतपंचमी,12 फरवरी माघी पूर्णिमा के बाद 26 फरवरी महाशिवरात्रि को छठे पवित्र स्नान के लिये करोड़ो श्रद्धालुओं की भारी भीड ने उत्तर प्रदेश, बिहार,उत्तराखण्ड, दिल्ली, झारखण्ड, मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र राज्यों के प्रयागराज मार्गों में जबर्दस्त ट्रैफिक जाम हो गया । वाहनों के लम्बे जाम को सुचारु करने , यातायात को सुचारु रखने और वाहन पार्किंग की व्यवस्था और क्राऊड मैनेजमेंट बनाए रखने मे स्थानीय प्रशासन, पुलिस, यातायात पुलिस के साथ बहुत से स्थानों पर सेना और एनसीसी कैडेटस को तैनात करना पड़ा । यात्री ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों मे अपार भीड़ पूरे समय बनी रही। इन सबसे ना तो लोग हतोत्साहित हुए और ना ही अंतिम दिन तक प्रयागराज मे श्रद्धालुओं की भीड़ कम हुई। महाशिवरात्रि तक त्रिवेणी संगम मे पवित्र स्नान करने वालों की संख्या 67 करोड़ को पार कर गयी ।
प्रयागराज की धरा और वहां के नागरिकों का अभिनन्दन --
45 दिन तक देश - विदेश के कोने - कोने से महाकुंभ संगम स्नान के लिये प्रयागराज पहुँचने वाले अनुमानित 65 करोड़ श्रद्धालुओं के स्वागत्, सेवा और सहयोग के लिये प्रयागराज की धरती , वहाँ के पूज्य गणमान्य नागरिकों और प्रयागराज प्रशासन की जितनी प्रशंसा की जाए ,वह कम होगी। घर में दो दिन चार मेहमान आ जाएं या गाँव में दो दिन हजार - पांच सौ बाहरी लोगों की भीड़ आ जाए तो सब कुछ अस्त व्यस्त हो जाता है। प्रयागराज में 45 दिन तक आधा भारतवर्ष समाहित था। सडकों - गलियों, गंगा घाट पर तिल रखने को जगह नहीं थी। छात्र स्कूल - कालेज नहीं जा पा रहे थे। बीमारों को अस्पताल पहुँचने में दिक्कत हो रही थी। न्यायालय , कार्यालयों , सब्जीमण्डी कहीं भी आने - जाने के लिये मशक्कत करना पड रहा था। हर तरह के पारिवारिक, सामाजिक आयोजन के लिये लोगों ने समय को आगे बढा दिया। ऐसी तमाम छोटी - बड़ी समस्याओं से दो - चार होते प्रयाग वासियों का धैर्य नहीं चुका और उन्होंने महाकुंभ के सफल - कुशल आयोजन के लिये अपना यथा योग्य महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया। प्रयागराज की धरती और वहाँ की प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष सहयोगी शक्तियों,गणमान्य जनो, आश्रमों,अखाड़ों,मठ ,मन्दिरों को देश हमेशा याद करेगा।
पुरातन, वर्तमान ,भविष्य का संगम --
प्रयागराज महाकुंभ में दुनिया ने देखा कि किस तरह से धार्मिक आध्यात्मिक परंपराओं का सम्मान करते हुए असीम श्रद्धा की लहर पर सवार 65 करोड़ से अधिक श्रद्धालुगण इतनी बडी व्यवस्था के प्रत्यक्ष सहयोगी बने। किस तरह से बिना बल प्रयोग,बिना प्रलोभन,बिना भय के प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो , की पवित्र भावना के साथ करोड़ो - करोड़ लोग पुण्य अर्जित करने , पापों के नाश और मोक्ष की कामना से प्रयागराज त्रिवेणी में डुबकी लगाते दिखे।
वहीं दूसरी ओर प्रयागराज महाकुंभ 2025 में पुरातन, वर्तमान और भविष्य की परंपराओं की त्रिवेणी की झलक भी दिखी। महाकुंभ में जटा जूट बढाए साधु - संत ,नागाओं, अखाड़ा प्रमुखों की कार्यशैली में डिजिटल इण्डिया की स्वीकार्यता पाई गयी। नई पीढी के युवाओ और छोट छोटे - अबोध बच्चों ने भी महाकुंभ मे पवित्र स्नान किया। महाकुंभ 2025 पुरातन, वर्तमान और भविष्य की तीन पीढ़ियों का पवित्र संगम जैसा था, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ सदियों याद करेंगी।
सामाजिक समरसता की बना मिसाल --
प्रयागराज महाकुंभ अपनी विशालता,पौराणिकता, आध्यात्मिक धार्मिक उत्सव के रुप मे भारतीय सनातन परंपरा का प्रमुख ध्वजवाहक बन कर उभरा है। डिजिटल माध्यम से व्यापक प्रचार - प्रसार होने के कारण महाकुंभ में अपेक्षा से अधिक श्रद्धालुगण त्रिवेणी में डुबकी लगाने पहुंचे । माना जा रहा है कि देश की आबादी का प्रत्येक तीसरा व्यक्ति प्रयागराज महाकुंभ डुबकी लगाने पहुंचा। जाति,पंथ,सम्प्रदाय, भाषा , क्षेत्र , विचारधारा की सीमाओं को लांघ कर लोग यहाँ पहुँचे। 45 दिवसीय महाकुंभ में कहीं ये यह खबर नहीं आई कि किसी पंडे - पुजारी , रिक्शे - नाव वाले , होटल मालिक या व्यवस्था से जुडे किसी भी व्यक्ति ने किसी भी श्रद्धालु या पर्यटक से उसका जाति, धर्म, पंथ पूछा हो। प्रयागराज महाकुंभ भारतीय सनातन परंपरा का प्रमुख ध्वजवाहक बन कर सामने आया। यह सामाजिक समरसता का ऐसा प्रतीक बन कर सामने आया ,जिसने भारत और इसकी सीमाओं से बाहर तक विश्व बन्धुत्व और विश्व कल्याण की खुश्बू को बिखेरने का कार्य किया है।