76वें गणतंत्र की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई स्वीकार करें……

Photo by google
76वें गणतंत्र की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई स्वीकार करें……
यह वर्ष भारतीय गणतंत्र की हीरक जयंती का वर्ष है और इन 75 वर्षों में भारत ने अनेकों उपलब्धियाँ हासिल की हैं।आज भारत वासियों ने अपने राष्ट्र को विश्व के पटल पर प्राचीन काल की भाँति पुनः चमकाना प्रारंभ कर दिया है। भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। चिकित्साविज्ञान से लेकर अभियांत्रिकी तक के सभी क्षेत्रों में यहाँ विश्व स्तरीय विकास हुआ है।फिर भी अनेकों विसंगतिया भी हैं जिनको दूर किया जाना ज़रूरी है।
भारतीय गणतंत्र संविधान की मजबूत बुनियाद पर खड़ा
है जिसमे बागडोर जानता के हाथ में है कि वह लोकतंत्र को किस दिशा में लेजाना
चाहती है। विगत वर्षों में हम लोकतंत्र के महान सिद्धांतों के विरुद्ध चले गए। यह अभागा देश कई जातीयों और आर्थिक वर्गों में विभाजित है। यह विभाजन असंख्य है। मैं समझता हूँ कि संसार के संविधानों में यह प्रथम अवसर है कि दो प्रशासकों की एक नई जाति बनाई गई है और उसको एक विशेषाधिकार प्राप्त स्थिति में रखा गया है।उसको ऐसी स्थिति में रखा गया है कि जानता के प्रसिद्ध प्रतिनिधि भी उसके विशेषाधिकारों को छू नहीं सकते, चाहे वे जानता के विरुद्ध ही हों।मेरी दृष्टि में वह हमारे संविधान के प्रथम मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध है।संविधान निर्माताओं ने लोकतंत्र को संविधान के मूल में रखा है , मेरी दृष्टि में समस्त देशवासियों को लोकतंत्र के नैतिक, आध्यात्मिक और गहन भाव को समझ ले यदि नहीं समझा …तो लोकतंत्र को स्वैरतंत्र ( निरंकुश तंत्र) बना दिया जाएगा और फिर उसको साम्राज्य तंत्र बना दिया जाएगा और फिर एक तंत्र हो जाएगा।
देश के निर्वाचित प्रतिनिधि गण बहुधा यह भूल जाते हैं कि वे जानता के सेवक हैं। सदैव यही होता है कि हमारे विचारों और कर्मों के कारण हमारी भाषा इस आधारभूत विचार के अनुरूप नहीं होती है। एक मंत्री “ हमारी सरकार “ कहता है , जानता की सरकार”नहीं कहता। अतः इस गंभीर अवसर पर स्पष्ट तथा विशिष्ट रूप में यह निर्धारित करना आवश्यक है कि सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नता जानता में निहित है और वही इसका उदगम है।
संविधान स्वयं में कुछ नहीं होता। संविधान पारित होने के दिन अध्यक्ष डाक्टर राजेंद्र प्रसाद जी ने संविधान सभा में कहा था यह संविधान किसी बात के लिए उपबंध करे या न करे राष्ट्र का कल्याण उस रीति व उन व्यक्तियों पर निर्भर करेगा जो शासन करेंगे। उन्होंने दो बातों को लेकर खेद भी व्यक्त किया ,” केवल दो खेद की बातें हैं।” मैं विधायिका के सदस्यों के लिए कुछ योग्यताएँ निर्धारित करना पसंद करता। असंगत है कि प्रशासन करने या विधि के शासन में सहायकों के लिए हम उच्च अहर्ता का आग्रह करें लेकिन विधि निर्माताओं के लिए निर्वाचन के अलावा कोई अहर्ता न रखें। विधि निर्माताओं के लिए बौद्धिक उपकरण अपेक्षित है , संतुलित विचार करने की सामर्थ्य व चरित्र बल भी। दूसरा खेद यह है कि हम स्वतंत्र भारत का अपना संविधान भारतीय भाषा में नहीं बना सके।
संविधान सभा के प्रारम्भ में ही धुलेकर जी ने हिंदी में संविधान बनाने की माँग की। वी एन राव द्वारा तैयार संविधान का पहला मसौदा अक्टूबर 1947 में आया। डाक्टर अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली समिति का मसौदा फ़रवरी 1948में आया। नवम्बर 1948 में तीसरा प्रारूप आया। तीनों अंग्रेज़ी में थे। सेठ गोविन्द दास, धुलेकर आदि ने हिंदी प्रारूप के विचारण की माँग की ,विश्व के सभी देशों के संविधान मात्रि भाषा में हैं, लेकिन भारत का अंग्रेज़ी में बना। लेकिन विडंबनाएँ और भी हैं। हमारे संविधान में देश के दो नाम हैं- इंडिया दैटिज भारत।
संविधान सभा में देश के नाम पर भी बहस हुई वोट पड़े । भारत को 38 और इंडिया को 51 वोट मिले। भारत प्राचीन राष्ट्र है। लेकिन इंडिया दैट इज भारत को राज्यों का संघ ( अनुक्षेद -1) कहा गया। इस संविधान में अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार है, लेकिन अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं। विधि के समक्ष समता है, लेकिन अनेकों वर्गीय विशेषाधिकार भी हैं।पर्सनल ला बोर्ड जैसे क़ानून भी हैं।उद्देश्यिका में संविधान का दर्शन है, लेकिन प्रवर्तनीय नहीं । राज्य के नीति निर्देशक तत्व प्यारे हैं, लेकिन वे भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं । समान नागरिक संहिता महान आदर्श है लेकिन इसके लागू होने की व्यवस्था नहीं। हिंदी राज भाषा है पर अंग्रेज़ी का प्रभुत्व है। जम्मू कश्मीर सम्बंधी अनुक्षेद 370 जो अस्थायी था मात्र उसे ही मोदी सरकार ने संशोधित किया। वह बधाई के पात्र हैं। संविधान की मूलप्रति में श्री राम , श्री कृष्ण सहित 23 चित्र थे। राजनीति उन्हें काल्पनिक बताती है। केंद्र द्वारा प्रकाशित संविधान की प्रतियों में वे ग़ायब हैं।
मेरी नज़र में भारत का संविधान किसी क्रांति का परिणाम नहीं है। ब्रिटिश सत्ता ने पराजित क़ौम की तरह भारत नहीं छोड़ा। भारतीय संविधान में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित 1935 के अधिनियम के ही अधिकांश अंश हैं।
भारतीय गण तंत्र 75 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका आज विचार करने की आवश्यकता है कहाँपर क्या भूल चूक हुई और कौन सा विकल्प देश के पास शेष है। हमने संविधान में ऐसी बहुत सारी व्यवस्थाएँ कर रखींहैं की सब का भला हो , परंतु उन्हें लागू करने में असफल रहे।छोटे - छोटे स्वार्थों में फँस कर ग़लत ढंग से लाभ लेना जायज़ होता गया।आर्थिक भ्रष्टाचार के अनेक रूप देखने को कालांतर में मिला।
आर्थिक उदारी करणमें भागीदार लोगों में से अनेकों ने नियम क़ानूनों की आँखो में धूल झोंक कर अपना अधिकाधिक लाभ सुनिश्चित किया।बड़े - बड़े आर्थिक घोटालों की झड़ी लग गई थी। अबतक विकास और प्रगति का लाभ सीमित वर्ग को मिला। गणतंत्र को अनुशासित होने की आवश्यकता है परंतु सत्ताधीश पार्टियाँ अपनी सुविधानुसार व्यवस्था चलाना चाहते हैं । आज राजनीति का स्वभाव सीमित और संकुचित हो चुका है। समाज के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की ज़िम्मेदारी बनती है की वे व्यापक समाजिक हित में कार्य करने का प्रयत्न करेंऔर सत्ता का समीकरण साधने में भ्रामक व्याख्या एवं अतिवादी आग्रहों के उपयोग से विरत रहें। प्रौढ़ हो रहे भारत के समक्ष ढेरों जनकांक्षाए हैं ।ऐसे में समानता , बंधुत्व , समरसता का लक्ष्य सामने रख कर इसकी प्राप्ति के लिए हम सबको संयुक्त रूप से काम करना चाहिए।
जय हिन्द ।
शीतला शंकर विजय मिश्र
[लोकतंत्र रक्षक सेनानी]
मुख्य महामंत्री
अ०भा०पं०परिषद/ न्यासी सचिव , बलवंत राय मेहता पंचायती राज संस्थान फ़ाउंडेशन,बलवंत राय मेहता पंचायत भवन , दिल्ली
दिनांक-26-01-2024