भारत में क्यों दिया जाता है जात-पात को महत्त्व, आखिर कब हुआ जाति प्रथा की शुरुआत

भारत में क्यों दिया जाता है जात-पात को महत्त्व
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भारत में क्यों दिया जाता है जात-पात को महत्त्व, आखिर कब हुआ जाति प्रथा की शुरुआत

भारत मेें जात-पात की शुरूआत बहुत पहले हुई थी, जब मनुष्‍य प्रारंभिक अवस्‍था मेंं थे यह समय काल है पाषाण युग का जिसे स्‍टोन ऐज भी कहा जाता है, उस समय मनुष्‍य आदमखोर थे, और कुछ-कुछ लोग सभ्‍यता की तरफ बड़ रहे थे, इस समय लोग जन समुहो में रहने लगे थे, आइये जानते है जाति प्रथा के बारे में इतिहास-

  • समुह में रहने से जानवरो के हमलो से बचा जा सकता था।

  • खाना जुटाने मे आसानी होती थी।
  • काम करने में आसानी होती थी।
  • समुह के जरिये खेती करना प्रारंभ हुआ (नदीयो के समीप)
  • खेती करने पर कारण लोग स्‍थाई होते गए।
  • संसाधन जुटाने में लोग माहिर हो गए।

भारतीय इतिहास के प्राचीन काल में, जाति एक व्यक्ति के व्यवसाय, व्यापार और सामाजिक स्थान को प्रभावित कर सकती थी। जातियों की संख्या भी विभिन्न काल में बढ़ी और घटी, जिससे नई जातियां पैदा हुईं। यह एक संगठनात्मक व्यवस्था थी जिसमें लोगों को उनके काम और व्यवसाय के अनुसार वर्गीकृत किया गया था।

मध्यकालीन काल में आधुनिक जाति प्रथा की मूल अवधारणाएं विकसित हुईं। उस समय जाति प्रथा धार्मिक और सामाजिक बंधनों से जुड़ी हुई थी, जिसका समाज के विभिन्न हिस्सों में असर पड़ा। विभिन्न जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में अंतर आने लगा, और वे जाति विकास और सत्ता के प्रतीक के रूप में देखा गया।

जाति प्रथा का सटीक इतिहासिक समय निर्धारित करना मुश्किल है क्योंकि यह समय के साथ अपनी रूपरेखा बदलती रही है। हालाँकि, जाति प्रथा स्पष्ट रूप से भारतीय सामाजिक और धार्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह कभी भी एक निश्चित समय पर समाप्त नहीं हुई है।naitaaqat