पुस्तक का कवर बदल देने मात्र से कुछ होने वाला नही …

आम आदमी के कार्य विना गुड़ के नही हो रहे,आवाजे दम तोड़ रही। श्री कपूर सतना। सरकार नियम बनाती है, हम लोगनियम कायदों के पालन के लिये जाने जाते है, लेकिन अधिकारी नियम कायदो के पालन की प्रक्रिया को तब तक लटकाये रखते है, जब तक कि उन्हें घूंस नही मिल जाती है। यकीन ना The post पुस्तक का कवर बदल देने मात्र से कुछ होने वाला नही … first appeared on saharasamachar.com.
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पुस्तक का कवर बदल देने मात्र से कुछ होने वाला नही …

आम आदमी के कार्य विना गुड़ के नही हो रहे,आवाजे दम तोड़ रही।

श्री कपूर

सतना। सरकार नियम बनाती है, हम लोग
नियम कायदों के पालन के लिये जाने जाते है, लेकिन अधिकारी नियम कायदो के पालन की प्रक्रिया को तब तक लटकाये रखते है, जब तक कि उन्हें घूंस नही मिल जाती है। यकीन ना हो तो ड्राइविंग लाईसेंस से लेकर किसी एक नियम का पालन करके स्थिति का जायजा स्वयं ले लीजिये?
बहरहाल चुनावों मे भले ही राजनैतिक पार्टियां सुशासन बहाली के दावे करती हों मगर जीतने के बाद इसके लिये वे ज्यादा कुछ करती नही है, ले देकर प्रशासनिक कसावट के नाम पर कुछ अधिकारियों की अदला बदली कर दी जाती है, और इस तरह सुशासन बहाली की औपचारिकता पूरी हो जाती है।

उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से ही सरकारें सुशासन के नाम पर नाना प्रकार के नियम कानून बनाती चली आ रही है, लेकिन इस तरह के नियम कायदो से हुआ कुछ नही।

सुशासन आया नही उल्टे नाना प्रकार के कानूनो की वजह से आम आदमी रिश्वत के जाल मे बेवजह फंसता चला गया। इसलिये सरकार चाहे किसी की भी बन जाये घूंस का दायरा कभी कम नही होता है। वैसे तो नये कानून बनाने से बेहतर यह होता कि सरकारें सिस्टम को अपग्रेड करके नियम कायदों के पालन की प्रक्रिया का सरलीकरण कर देती और जनता को जटिल प्रक्रिया की तकलीफों व घूंस की बेड़ियों से मुक्त कर देती। लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ता है, कि घूंस के मामले मे सभी सरकारों का रवैया एक जैसा ही रहा है।

इसी लिए कहता हूं कि शिवराज हों या फिर कमलनाथ इससे जनता को क्या फर्क पड़ता है। यह अलग बात है कि सरकार बदल जाने के बाद कुछ लोगो की राजनैतिक हैसियत बदल जाती है और इसके साथ ही साथ चंद सरकारी अमले के लोग भी पावरफुल हो जाते है, और इस तरह के परिवर्तन को सरकारी भाषा मे प्रशासनिक सर्जरी कहकर महिमा मंडित कर दिया जाता है। हालांकि यह एक ऐसी वाहियात सर्जरी है,जिससे जनता को कुछ हासिल नही होता है क्योंकि

पुराने निगमायुक्त की जगह नये निगमायुक्तआ जायें या दर्जनो थानेदार यहां से वहां चलें जायें इससे क्या फर्क पड़ता है ?
क्योंकि जिस सिस्टम के तहत वे यहां मौज कर रहे थे,उसी सिस्टम के तहत वे वहां भी मौज करेंगे जहां उन्हे प्रशासनिक सर्जरी के तहत भेजा जा रहा है।
जाहिर सी बात है कि आरटीओ साहब को किसी भी जिले मे रख दीजिये इससे उनकी सेहत और कमाई पर कोई असर नही पड़ेगा क्योंकि जब तक राज्य मे अधिकारियों के पास अनुमति का विशेषाधिकार रहेगा,तब तक उन्हे कहीं भी रखा जाये उनकी पांचों उंगलियां घी मे और सर कढाई मे ही रहेगा।

लिहाजा अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से ज्यादा जरूरी यह है, कि अनुमति का खेल बंद किया जाये और वाहन चलाने की अनुमति से लेकर मकान बनाने तक की अनुमति की मौजूदा प्रक्रिया मे ना सिर्फ बड़ा बदलाव किया जाये, बल्कि इसके लिये एक ऐसा सिस्टम बनाया जाये जिससे आम आदमी का काम बगैर घूंस के हो सके।
अतः शिवराज जी अधिकारियों की अदला बदली से ज्यादा जरूरी यह है कि आप सिस्टम को ठीक करने पर ध्यान दीजिये। पुस्तक का कवर बदल देने भर से कुछ होने वाला नही है…

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