विश्व में जन आस्था, शिंगणापुर से भी ज्यादा खास शनि देव का मंदिर एंती गांव: स्वयं बजरंगबली ने की थी स्थापना -
 

भगवान शनि के मंदिर को सबसे प्राचीन शनि धाम का दर्जा दिया जाता -
 
 

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विश्व में जन आस्था, शिंगणापुर से भी ज्यादा खास शनि देव का मंदिर एंती गांव: स्वयं बजरंगबली ने की थी स्थापना,मुरैना में स्थित भगवान शनि के मंदिर को सबसे प्राचीन शनि धाम का दर्जा दिया जाता, शिंगणापुर स्थित शनि मंदिर में भगवान के विग्रह के लिए जन शिला मुरैना से ही ले जाई गई -

पंकज पाराशर । वीर भूमि भारत में शनि धाम की बात आते ही सबसे पहला नाम नासिक के पास स्थित शनि शिंगणापुर की याद आती है। यहां दूर दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन क्या आपको पता है ? देश में शनि देव का एक और मंदिर है जो शिंगणापुर धाम से भी ज्यादा खास है। दरअसल ये मंदिर मध्य प्रदेश में ग्वालियर के नजदीकी एंती गांव में स्थित है। इसे शनि महाराज का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। यहां विराजमान शनि देव की स्थापना खुद बजरंगबली ने की थी। मान्यता है कि मंदिर की स्थापना त्रेता युग में हुई थी।

पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार सतयुग में रावण ने शनि देव को बंधक बना लिया था। तब हनुमान जी ने उन्हें कैद से मुक्त कराया था। मगर शनि देव के कमजोर शरीर के चलते उन्होंने बजरंग बली से उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर रखने की बात कही थी। तब हनुमान जी ने उन्हें मुरैना स्थित पर्वत पर शनि देव को स्थापित किया था। तब से यहां शनि देव विराजमान है। इस जगह को मुरैना स्थित शनि मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जिस वक्त हनुमान जी ने यहां शनि देव का रखा था तब आसमान से उल्कापिंडों की बारिश हुई थी। एक विशाल उल्कापिंड मंदिर के पास आकर गिरा था। उसी उल्का से निकलने वाली शिला से शनि देव के विग्रह का निर्माण हुआ है। मंदिर के पास आज भी उल्कापिंड गिरने से हुए गड्ढे का निशान मौजूद है।

लौह तत्वों का है भंडार
शनि देव का संबंध लोहे से माना जाता है। इसलिए मुरैना स्थित शनि मंदिर के आस—पास लौह तत्व का भंडार मौजूद है। यहां जमीन से खूब लोहा निकलता है। जानकारों का मानना है कि उल्कापिंड गिरने की वजह से धरती के नीचे काफी मात्रा में लोहे के कण बिखर गए थे। जो आज भी खुदाई में निकलते हैं।

राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था मंदिर
बताया जाता है कि पहले ये इलाका बिल्कुल सुनसान हुआ करता था। यहां घने जंगल थे। इसी के बीच शनि देव का विग्रह रखा हुआ था। इसे मंदिर का रूप देने में राजा विक्रमादित्य ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद 1808 में ग्वालियर के तत्कालीन महाराज दौलतराव सिंधिया ने मंदिर की व्यवस्था के लिए जागीर लगवाई। तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया ने 1945 में जागीर को जप्त कर यह देवस्थान औकाफ बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज ग्वालियर के प्रबंधन में सौंप दिया था।

शिंगणापुर मंदिर के लिए भी यहीं से गई है शिला
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार देश के प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर में स्थित शनि के विग्रह के लिए शिला इसी पर्वत से ले जाई गई थी। इसलिए मुरैना स्थित शनि को सबसे प्राचीन माना जाता है। यहां दर्शन करने मात्र से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।