पपीते की खेती किसानों को बनाएगी अमीर, सालभर रहती है इसकी मांग, इस तरह करें खेती होगी बम्पर पैदावार

 सालभर रहती है इसकी मांग
 

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पपीते की खेती किसानों को बनाएगी अमीर, सालभर रहती है इसकी मांग, इस तरह करें खेती होगी बम्पर पैदावार

फलों में पपीते का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। पपीता जल्द तैयार होने वाली फसल है। इसका फायद यह है कि एक बार लगाने में दो बार फल लगते हैं। पपीते का उपयोग जैम, पेय पदार्थ, आइसक्रीम एवं सीरप इत्यादि बनाने में किया जाता है। इसके बीज भी औषधीय गुणों के लिए महत्वपूर्ण हैं। कच्चे फल सब्जी के रूप में उपयोग किए जाते हैं। भारत में अधिकांश हिस्सों में इसकी खेती की जाती है। पपीते में भरपूर मात्रा में विटामिन ए पाया जाता है। जिन लोगों को अपच की समस्या है उनके लिए तो पपीता रामबाण इलाज है। पपीता का बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है ऐसे में इसकी उन्नत तरीके की खेती की जाए तो कम लागत पर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। तो आइये जानते है पपीते की खेती करने की पूरी प्रोसेस।

पपीते की खेती के लिए मिट्टी व जलवायु

पपीते की खेती के लिए मिट्टी का पीएच लेवल 6.0 और 7.0 के बीच की हल्की दोमट या दोमट मिट्टी जिसमें जलनिकास अच्छा हो सर्वाधिक उपयुक्त होती है। उष्णकटिबन्धीय जलवायु पौधे के लिए लाभदायक है। पपीते की अच्छी खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है। इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है। पपीता बहुत ही जल्दी बढऩे वाला पेड़ है। पपीते की खेती साल के बारहों महीने की जा सकती है लेकिन इसकी खेती का उचित समय फरवरी और मार्च एवं अक्टूबर के मध्य का माना जाता।

पपीते की उन्नत किस्में

देश की विभिन्न राज्यों आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तरांचल और मिज़ोरम में इसकी खेती की जाती है। इसकी उन्नत किस्में इस प्रकार हैं – पंत पपीता-1, पूसा ड्वार्फ, रेड लेडी 786, हनीड्यू, सी.ओ.-1, सी. ओ. -2, सी.ओ.-3, पूसा डोलसियरा आदि।

खेत की तैयारी और पौधा रोपड़

पौध रोपण के पहले खेत की तैयारी मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर 2-3 बार कल्टिवेटर या हैरो से जुताई करें। तथा समतल कर लें । पपीते की खेती के लिए खेत में 2*2 मीटर की दूरी पर 50*50*50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदें थे उन्हें 15 दिनों के लिए खुले छोड़ दें ताकि ताकि गड्ढों को अच्छी तरह धूप लग जाए और हानिकारक कीड़े – मकोड़े व रोगाणु आदि नष्ट हो जाएं। इसके बाद पौधे का रोपण करना चाहिए। पौधे लगाने के बाद गड्ढे को मिट्टी और गोबर की खाद 50 ग्राम एल्ड्रिन मिलाकर इस प्रकार भरना चाहिए कि वह जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊंचा रहे। गड्ढे की भराई के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए।

सिंचाई

पपीता के पौधो की अच्छी वृद्धि और अच्छी फलोत्पादन के लिए मिटटी में सही नमी स्तर बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। नमी की अत्याधिक कमी का पौधों की वृद्धि फलों की उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आमतौर पर शरद ऋतु में 10-15 दिन के अंतर से और ग्रीष्म ऋतु में 5-7 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। सिंचाई की आधुनिक विधि ड्रिप तकनीकी अपनाऐ। साथ ही वर्षा शुरू होने से पहले प्रति पेड़ गड्ढा में 30 सें.मी. व्यास से मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए जिससे पेड़ सीधा रहे।

फलों की तुड़ाई

पपीत के पूर्ण रूप से परिपक्व फलों को जबकि फल के शीर्ष भाग में पीलापन शुरू हो जाए तब डंठल सहित तुड़ाई करें। तुड़ाई के पश्चात् स्वस्थ, एक से आकार के फलों को अलग कर लें तथा सड़े गले फलों को अलग हटा दें। 12-14 महीने के अंदर फल की पहली तुड़ाई हो जाती है।साभार - betul samachar