‘शास्त्री’ विस्मृत हुए और गांधी हुए कांग्रेस का ‘ब्रांड’

‘शास्त्री’ विस्मृत हुए और गांधी हुए कांग्रेस का ‘ब्रांड’
 

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गांधी महामानव थे। उन दिनों विश्व उनकी अगुवाई स्वीकार करने को तैयार था। वह गुलामी का काल था। गांधी का सत्य और अहिंसा वाला प्रयोग विश्व का पथप्रदर्शक बन गया था। गर्व की बात यह है कि गांधी ने भारत में जन्म लिया था। आज अहिंसा शब्द को जीवन में उतारने का समय है क्योंकि किसी भी सफलता का रास्ता हिंसा से होकर गुजरता है यह माना जा रहा है। किसान आन्दोलन से मणिपुर तक हम इसको देख सकते हैं? लेकिन अहिंसा मूल शब्द नहीं है, वह हिंसा के प्रतिकार के स्वरूप में सामने आया है। हिंसा के बाद ही अहिंसा का शब्द प्रयोग में आ सकता है उससे पहले नहीं। आज गांधी वाले अहिंसा शब्द का उपयोग नहीं हो सकता है क्योंकि उस समय अहिंसा शब्द अंग्रेजों की हिंसा के प्रतिकार के लिए उपयोग में नहीं हुआ था, जलियांवाला बाग कांड पर भी गांधी का अहिंसा शब्द चल नहीं पाया। गांधी का अहिंसा वाला शब्द केवल क्रान्तिकारियों के द्वारा आजादी के लिए की जा रही तथाकथित हिंसा के विरूद्ध उपयोग होने वाला शब्द था।

भोपाल। गांधी महामानव थे। उन दिनों विश्व उनकी अगुवाई स्वीकार करने को तैयार था। वह गुलामी का काल था। गांधी का सत्य और अहिंसा वाला प्रयोग विश्व का पथप्रदर्शक बन गया था। गर्व की बात यह है कि गांधी ने भारत में जन्म लिया था। आज अहिंसा शब्द को जीवन में उतारने का समय है क्योंकि किसी भी सफलता का रास्ता हिंसा से होकर गुजरता है यह माना जा रहा है। किसान आन्दोलन से मणिपुर तक हम इसको देख सकते हैं? लेकिन अहिंसा मूल शब्द नहीं है, वह हिंसा के प्रतिकार के स्वरूप में सामने आया है। हिंसा के बाद ही अहिंसा का शब्द प्रयोग में आ सकता है उससे पहले नहीं। आज गांधी वाले अहिंसा शब्द का उपयोग नहीं हो सकता है क्योंकि उस समय अहिंसा शब्द अंग्रेजों की हिंसा के प्रतिकार के लिए उपयोग में नहीं हुआ था, जलियांवाला बाग कांड पर भी गांधी का अहिंसा शब्द चल नहीं पाया। गांधी का अहिंसा वाला शब्द केवल क्रान्तिकारियों के द्वारा आजादी के लिए की जा रही तथाकथित हिंसा के विरूद्ध उपयोग होने वाला शब्द था। गांधी का अहिंसा वाला शब्द बंटवारे के नरसंहार में बहे रक्त को भी हिंसा मान कर उपयोग में नहीं आया। इसलिए आज विश्व को गांधी के अहिंसा शब्द की नहीं वास्तविक अहिंसा शब्द की जरूरत है। शास्त्री के ईमान और आदर्श की भी उतनी ही जरूरत है जितनी गांधी की अहिंसा की है।

उस कालखंड में कई महापुरूष हुए हैं। जिन्होंने आजादी के साथ अपने सिद्धान्त दिये। शास्त्री जी विस्मृत कर दिये गये अन्यथा उनका सिद्धान्त विकास में कारगर सिद्ध होता। गांधीवाद और अम्बेडकर का दलित उत्थान आज भी प्रयोग में लाया जाता है। इसी समय समग्र हिन्दू का उद्घोष करने वाले डा. हेडगेवार का कालखंड भी था। लेकिन वे खुद ही प्रचार और चर्चा से दूर रहने का संकल्प लिये हुए थे। इसलिए आजादी के समय की उनकी चर्चा का किसी को पता नहीं चल पाया। उन्होंने जिस विचार का बीजारोपण किया था वही विचार आज देश का संचालन कर रहा है। गांधी का विचार कांग्रेस का ब्रांड बनने से पीछे रहता गया और समग्र हिन्दूत्व का विचार देश का प्रतिनिधित्व करता गया। इस दौर में शास्त्री का ईमान वाला विचार कौन स्वीकार करेगा? व्यवसायिक दौर की राजनीति का आदर्श यह विचार कैसे बन सकता है? इसलिए शास्त्री जी को तो विस्मृत होना ही था। गांधीवाद तिरोहित हो गया और उनके नाम पर वोट मिलते जायेंगे इसलिए गांधी का उपयोग भी हुआ और याद किये जाते रहे।

1944 में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढिय़ां शायद ही विश्वास करेंगी कि हाड मांस का ऐसा व्यक्ति भारत की भूमि पर चलता फिरता था। यह सच नहीं है क्योंकि भारत आज भी मानता है कि इसी धरती पर राम-कृष्ण बाल रूप में घूमा करते थे जो भगवान हुए। इस घरती पर नानक, बुद्ध और महावीर भी घूमा करते थे जिन्होंने भाईचार, विश्वास और शान्ति का पाठ पढ़ाया था। उन लोगों को गांधी को मानने में क्या दिक्कत होगी? क्योंकि गांधी राजनीतिक व्यक्ति थे इसलिए उनकी दोहरी चर्चा होगी। उनके आदर्श एक तरफ होंगे जो सर्व स्वीकार्य रहे और राजनीति चर्चा और आलोचनाओं में आयेगी?

भारत भूमि अनुभवों और प्रयोग की स्थली रही है। यही से ज्ञान का अंकुर फूटा था और अविष्कार भी यहीं की देन है। भारतीयों के मन से वेद और पुराणों के साथ उनकी भाषा संस्कृत के प्रति अनादर पैदा कराकर उनका उपयोग विदेशों में किया गया। तब वहां से अविष्कार सामने आये जबकि ये सब गुलामी काल के कालखंड के ही क्यों हैं? इससे पहले क्या उनके पास यह ज्ञान नहीं था? आजादी के बाद जारी रही इसी नीति ने देश के विचार को कमजोर किया और आज हम समग्र हिन्दूत्व के विचार को सामने रखकर फिर से पुराने वैभव को प्राप्त कर रहे हैं। यह चाहते तो गांधी भी अपने प्रयोग का हिस्सा बना सकते थे। लेकिन राजनीतिक गांधी का हमेशा द्वंद्व गांधीवादी विचार देने वाले गांधी से चलता रहा। दुखद यह है कि जिन्होंने गांधी नाम का आवरण ओढ़ा वे गांधी को पहचानते नहीं हैं और जो गांधी के मूल वंशज हैं वे गांधी को अलग दिशा में लेकर जा रहे हैं। गांधी में घृणा नहीं थी लेकिन तुषार गांधी में यह कूट-कूट कर भरी है। गांधी हिन्दू विरोधी नहीं थे लेकिन उनके वंशज हिन्दूत्व के आलोचक हैं। इसलिए गांधी को दोनों प्रकार के गांधी ही नहीं संभाल पाये। इसलिए देश इस दुविधा वाले गांधी को कितने दिन संभाल पायेगा? अत: शास्त्री अपने कारणों से विस्मृत कर दिये गये और गांधी वोटों और नोटों तक रह गये। जीवन में नहीं उतर पाये। गांधी और शास्त्री जयंति पर दोनों महापुरूषों को नमन!shikharvani.