26 जुलाई,कारगिल विजय दिवस (कारगिल शौर्य / स्मृति दिवस)
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मर-मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा."
Jul 26, 2024, 19:46 IST
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26 जुलाई,कारगिल विजय दिवस (कारगिल शौर्य / स्मृति दिवस)
दिल्ली। कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दिवस है. इसे हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है. सन् 1999 में कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ. इसमें भारत की विजय हुई.
इसी युद्ध में शहीद हुए सैनिकों और वीरता दिखाने वाले जवानों के सम्मान में हर साल पूरे देश में विजय दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य कार्यक्रम जम्मू-कश्मीर में LoC के करीब मौजूद द्रास सेक्टर में स्थित 'कारगिल वार मेमोरियल' में होता है. ये मेमोरियल इसी युद्ध के दौरान शीहद हुए भारतीय सैनिकों की याद में ही बनाया गया है.
भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते के तहत तय हुआ था कि ठंड के मौसम में दोनों देशों की सेनाएं जम्मू-कश्मीर में बेहद बर्फीले स्थानों पर मौजूद LoC को छोड़कर कम बर्फीले वाले स्थान पर चली जाएंगी, क्योंकि सर्दियों में ऐसी जगहों का तापमान माइनस डिग्री में चले जाने के कारण दोनों देशों की सेनाओं को काफी मुश्किलें होती थीं.
1998 की सर्दियों में जब भारतीय सेना LoC को छोड़कर कम बर्फीले वाले स्थान पर चली गईं तो पाकिस्तानी सेना ने अपने करीब 5 हजार जवानों के साथ धोखे से भारतीय पोस्टों पर कब्जा कर लिया. इस दौरान घुसपैठियों के रूप में आई पाक सेना ने तोलोलिंग, तोलोलिंग टॉप, टाइगर हिल और राइनो होन समेत इंडिया गेट, हेलमेट टॉप, शिवलिंग पोस्ट, रॉकीनोब और 4875 बत्रा टॉप जैसी सैकड़ों पोस्टों पर कब्जा कर लिया था.
1999 की गर्मियों के दौरान जब भारतीय सेना दोबारा अपनी पोस्टों पर गई तो पता चला कि पाकिस्तान सेना की तीन इंफेंट्री ब्रिगेड कारगिल की करीब 400 चोटियों पर कब्जा जमाए बैठी है. पाकिस्तान ने डुमरी से लेकर साउथ ग्लेशियर तक करीब 150 किलोमीटर तक कब्जा कर रखा था.
भारतीय सेना को 4 मई 1999 को पाकिस्तान की हरकत के बारे में पता चला था, जिसके बाद जब 5 जवानों का गश्ती दल वहां पहुंचा तो घुसपैठियों ने उन्हें भयंकर यातनाएं देकर निर्ममता से उनकी हत्या कर दी थी और भारत को उनके क्षत-विक्षत शव सौंपे थे. इसके बाद भारत ने पाकिस्तानी घुसपैठियों से अपने इलाके को खाली कराने के लिए एक अभियान शुरू किया जिसे 'ऑपरेशन विजय' के नाम से जाना गया.
भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना ने संयुक्त अभियान चलाते हुए इस युद्ध में अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जीत हासिल की थी. युद्ध के दौरान जहां पाकिस्तानी घुसपैठिये पहाड़ों की ऊंचाई पर बैठे गोलीबारी कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ भारतीय सेना के जवान निचले इलाकों से उनका सामना कर रहे थे. इसके बावजूद घुसपैठिये भारतीय सेना का सामना नहीं कर सके थे और भागने पर मजबूर हो गए थे.
इस लड़ाई में भारतीय सुरक्षा बलों के करीब 2 लाख जवानों ने हिस्सा लिया था, जिसमें से 527 जवान शहीद हो गए थे, वहीं 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे. पाकिस्तानी सेना को भारत से कहीं ज्यादा नुकसान हुआ था. यहां तक कि उसने अपने सैनिकों की लाशें लेने से भी इनकार कर दिया था.
इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए मिग-27 और मिग-29 का इस्तेमाल किया था. वहीं सेना ने बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल किया था जो इस युद्ध में जबरदस्त मारक साबित हुई थीं.
पाकिस्तानी सेना इस घुसपैठ के जरिए ना केवल कारगिल पर कब्जा करना चाहती थी, बल्कि लेह और सियाचिन ग्लेशियर तक भारतीय सेना की सप्लाई लाइन को भी काटना चाहती थी ताकि वहां पर भी कब्जा किया जा सके. हालांकि भारतीय सेना ने उसके नापाक मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया.
कारगिल युद्ध में शहीद सैनिकों की याद में द्रास सेक्टर में कारगिल वार मेमोरियल बनवाया गया, जो नवंबर 2004 में बनकर तैयार हुआ. द्रास सेक्टर से वो चोटियां नजर आती हैं, जहां पाकिस्तान की सेना ने कब्जा जमा लिया था.
यह दिन है उन शहीदों को याद करने और श्रद्धा-सुमनअर्पित करने के लिए है जिन्होंने हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया,ऐसे माँ भारती के सपूतों को कोटि-कोटि नमन करते हुए भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ।
जयहिंद ।
एस एस विजय मिश्र
इसी युद्ध में शहीद हुए सैनिकों और वीरता दिखाने वाले जवानों के सम्मान में हर साल पूरे देश में विजय दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य कार्यक्रम जम्मू-कश्मीर में LoC के करीब मौजूद द्रास सेक्टर में स्थित 'कारगिल वार मेमोरियल' में होता है. ये मेमोरियल इसी युद्ध के दौरान शीहद हुए भारतीय सैनिकों की याद में ही बनाया गया है.
भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते के तहत तय हुआ था कि ठंड के मौसम में दोनों देशों की सेनाएं जम्मू-कश्मीर में बेहद बर्फीले स्थानों पर मौजूद LoC को छोड़कर कम बर्फीले वाले स्थान पर चली जाएंगी, क्योंकि सर्दियों में ऐसी जगहों का तापमान माइनस डिग्री में चले जाने के कारण दोनों देशों की सेनाओं को काफी मुश्किलें होती थीं.
1998 की सर्दियों में जब भारतीय सेना LoC को छोड़कर कम बर्फीले वाले स्थान पर चली गईं तो पाकिस्तानी सेना ने अपने करीब 5 हजार जवानों के साथ धोखे से भारतीय पोस्टों पर कब्जा कर लिया. इस दौरान घुसपैठियों के रूप में आई पाक सेना ने तोलोलिंग, तोलोलिंग टॉप, टाइगर हिल और राइनो होन समेत इंडिया गेट, हेलमेट टॉप, शिवलिंग पोस्ट, रॉकीनोब और 4875 बत्रा टॉप जैसी सैकड़ों पोस्टों पर कब्जा कर लिया था.
1999 की गर्मियों के दौरान जब भारतीय सेना दोबारा अपनी पोस्टों पर गई तो पता चला कि पाकिस्तान सेना की तीन इंफेंट्री ब्रिगेड कारगिल की करीब 400 चोटियों पर कब्जा जमाए बैठी है. पाकिस्तान ने डुमरी से लेकर साउथ ग्लेशियर तक करीब 150 किलोमीटर तक कब्जा कर रखा था.
भारतीय सेना को 4 मई 1999 को पाकिस्तान की हरकत के बारे में पता चला था, जिसके बाद जब 5 जवानों का गश्ती दल वहां पहुंचा तो घुसपैठियों ने उन्हें भयंकर यातनाएं देकर निर्ममता से उनकी हत्या कर दी थी और भारत को उनके क्षत-विक्षत शव सौंपे थे. इसके बाद भारत ने पाकिस्तानी घुसपैठियों से अपने इलाके को खाली कराने के लिए एक अभियान शुरू किया जिसे 'ऑपरेशन विजय' के नाम से जाना गया.
भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना ने संयुक्त अभियान चलाते हुए इस युद्ध में अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जीत हासिल की थी. युद्ध के दौरान जहां पाकिस्तानी घुसपैठिये पहाड़ों की ऊंचाई पर बैठे गोलीबारी कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ भारतीय सेना के जवान निचले इलाकों से उनका सामना कर रहे थे. इसके बावजूद घुसपैठिये भारतीय सेना का सामना नहीं कर सके थे और भागने पर मजबूर हो गए थे.
इस लड़ाई में भारतीय सुरक्षा बलों के करीब 2 लाख जवानों ने हिस्सा लिया था, जिसमें से 527 जवान शहीद हो गए थे, वहीं 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे. पाकिस्तानी सेना को भारत से कहीं ज्यादा नुकसान हुआ था. यहां तक कि उसने अपने सैनिकों की लाशें लेने से भी इनकार कर दिया था.
इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए मिग-27 और मिग-29 का इस्तेमाल किया था. वहीं सेना ने बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल किया था जो इस युद्ध में जबरदस्त मारक साबित हुई थीं.
पाकिस्तानी सेना इस घुसपैठ के जरिए ना केवल कारगिल पर कब्जा करना चाहती थी, बल्कि लेह और सियाचिन ग्लेशियर तक भारतीय सेना की सप्लाई लाइन को भी काटना चाहती थी ताकि वहां पर भी कब्जा किया जा सके. हालांकि भारतीय सेना ने उसके नापाक मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया.
कारगिल युद्ध में शहीद सैनिकों की याद में द्रास सेक्टर में कारगिल वार मेमोरियल बनवाया गया, जो नवंबर 2004 में बनकर तैयार हुआ. द्रास सेक्टर से वो चोटियां नजर आती हैं, जहां पाकिस्तान की सेना ने कब्जा जमा लिया था.
यह दिन है उन शहीदों को याद करने और श्रद्धा-सुमनअर्पित करने के लिए है जिन्होंने हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया,ऐसे माँ भारती के सपूतों को कोटि-कोटि नमन करते हुए भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ।
जयहिंद ।
एस एस विजय मिश्र