12 जून न्याय पालिका की सर्वोच्चता एवं निष्पक्षता की तिथि ….

12 जून न्याय पालिका की सर्वोच्चता एवं निष्पक्षता की तिथि ….
 

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12 जून न्याय पालिका की सर्वोच्चता एवं निष्पक्षता की तिथि ….

दिल्ली। भारतीय लोकतंत्र में वर्षों पूर्व12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लोक बंधु समाजवादी नेता श्री राजनारायण की चुनाव याचिका याचिका स्वीकार करते हुए देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मती इंदिरा गाँधी का रायबरेली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा का निर्वाचन अवैध घोषित कर दिया था। देश की जनता दो प्रकार की विचार धाराओं में हो गयी - एक पक्ष श्री मती गाँधी से प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र की अनवरत माँग कर रहा था और दूसरे पक्ष में कांग्रेस पार्टी के कुछ लोग उनसे त्यागपत्र न देने का आग्रह कर रहा था। दोनों पक्ष अपने - अपने मत के समर्थन में विभिन्न प्रकार के तर्क प्रस्तुत कर रहे थे।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि क़ानून बहुत ही जटिल है। उसके सूक्ष्म पक्षों को साधारण व्यक्ति आत्मसात नहीं कर सकता है। अनेक विधिवेत्ता और न्यायाधीश भी एक प्रश्न पर प्रायः वैचारिक दृष्टि से विभक्त हो जाते हैं। क़ानून की असमर्थता और सीमाओं के कारण कभी - कभी दोषी और अपराधी मुक्त हो जाते हैं। कभी - कभी न्यायाधीश को यह विश्वास हो जाता है कि अमुक व्यक्ति अपराधी है , लेकिन प्रत्यक्ष प्रमाणों के आभाव में वह उसको सजा नहीं दे पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को क़ानून तो निर्दोष घोषित कर देता है , लेकिन समाज उन्हें निष्कलंक नहीं मानता है।
श्री मती इंदिरा गाँधी को क़ानून ने दोषी सिद्ध कर दंडित कर दिया लेकिन आम जनता के मन में ऐसी सम्भावनाएँ बन रही थीं कि उनके पिता रसूख़ एवं पद के प्रभाव में क़ानून के द्वारा ही उनको दोष मुक्त करालिया जायेगा । लेकिन विचारणीय विषय यह था कि क्या देश का इतिहास , समाज की नैतिकता और राष्ट्र की राजनैतिक परम्पराएँ भी श्री मती गाँधी को क्षमा कर देंगी।
देश का प्रत्येक विवेकी व्यक्ति इस तथ्य से सुपर्चित है कि चुनाव में सत्ता रूढ़ दल कांग्रेस सत्ता का उन्मुक्त रूप से दुरुपयोग 60 के दशक से प्रारम्भ कर दिया था। श्री मती इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में इसमें सबसे अधिक वृद्धि हुई थी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सम्माननीय न्यायाधीश श्री जगमोहन लाल सिन्हा का निर्णय श्री मती इंदिरा गाँधी के विरुद्ध न होकर उनके द्वारा संरक्षित और पोषित उस चुनाव प्रणाली के विरुद्ध था , जिसने प्रजातंत्र को हास्यास्पद बना दिया था , जिसने चुनाव को वीभत्स रूप प्रदान किया था , जिसने भ्रष्टाचार को नग्न- नृत्य करने के लिए सु अवसर प्रदान किया था।

इस प्रसंग में एक उल्लेखनीय विषय यह भी है कि अनियमितताएँ उतनी ही नहीं थीं, जिनका न्यायालय के निर्णय में उल्लेख किया गया है। न्यायालय और क़ानून ने केवल उन अनियमितताओं को स्वीकार कर श्री मती गाँधी को दंडित किया था जिसके सम्बंध में पुष्ट प्रमाण मिले थे।
12 जून 1975 में जो निर्णय श्री राज नारायण वनाम श्रीमती इंदिरा गांधी की चुनाव याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन माननीय न्यायाधीश श्री जगमोहन लाल सिन्हा जी ने दिया था , उससे भारत का लोक तंत्र मज़बूत हुआ और न्यायपालिका की निष्पक्षता सर्वोच्चता और यह तिथि देश के इतिहास में दर्ज हो गयी है।
जय हिंद

शीतला शंकर विजय मिश्र
(लोकतंत्र रक्षक सेनानी)
अधिवक्ता उच्चतम न्यायालय