जन्मदिवस पर विशेष....

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" 20वीं सदी का अजातशत्रु संघ निर्माता डॉ. हेडगेवार "
सिरमौर। संसार के इतिहास के पृष्ठो में क्या कोई ऐसा व्यक्ति मिलेगा जिसने हजार वर्षों से गुलामी की दासता की चक्की में पिस रहे समाज को संपूर्ण मानव प्रतिष्ठा के साथ सम्मान पूर्वक जीने का संदेश ही ना दिया हो बल्कि उसका हाथ पकड़ कर कदम-कदम पर चलना सीखाकर स्वाभिमान की ठनक के साथ जीना सिखाया हो? क्या आप इतिहास के किसी ऐसे महानायक से परिचित हैं जिसने जीवन की प्रत्येक क्षण को अखंड काल की इकाई मानकर हर क्षण को युग की तरह जिया हो? वह कौन व्यक्ति है जिसके व्यक्तित्व के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन उनके कृतित्व पर सारा संसार आश्चर्यचकित है? वह कौन अवतारी पुरुष है जो राष्ट्र कार्य को ही सर्वाधिक महत्व दिया? वह कौन इतिहास पुरुष है जिसने संस्कृतिक आत्म विस्मरण के चरणों में डूब रही मानवता को उसकी सांस्कृतिक पहचान कराई? इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है कि वह व्यक्ति है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलीराम हेडगेवार।
डॉक्टर हेडगेवार केवल इसलिए स्मरणीय नहीं है कि उन्होंने संसार के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की बल्कि वह इसलिए श्रेष्ठ है कि उन्होंने संसार की सबसे बड़ी सांस्कृतिक इकाई भारत को केंद्र में रखकर संसार की सबसे बड़ी प्राचीन और महान संस्कृति को इतिहास के खंडहर में ध्वन्स होने से बचा लिया। ऐसे महानायक का आज जन्म दिवस है इसलिए हिंदू चेतना की भागीरथी का रसपान करने वाले प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि इस शताब्दी के कालखंड के सबसे बड़े इतिहास पुरुष को पहचाने।
डॉक्टर हेडगेवार का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ था। इनकी माता रेवती बाई वह पिता पंडित वली राम पंत थे। डॉक्टर हेडगेवार जन्मजात देशभक्त एवं प्रथम श्रेणी के क्रांतिकारी थे। 28 जून 1897 में रानी विक्टोरिया के 60 वर्ष पूरे होने पर प्राप्त मिठाई के दोना को कूड़े में फेंक दी। 1902 में माता-पिता का एक दिन ही मृत्यु हो जाने से आघात तो समाप्त हो गया पर देशभक्ति अछुन्य रही। 1907 में निलगिरी विद्यालय में इंस्पेक्टर के निरीक्षण के समय कक्षा के सारे विद्यार्थी वंदे मातरम से स्वागत किया। मातृभूमि को स्वतंत्र करने की अग्नि उनके अंतःकरण में धड़क रही थी। डॉक्टर हेडगेवार को क्रांति का सूर्य भी कह सकते हैं और संक्रांति का बसंत भी। वे हिम भी थे हिमालय भी थे, वह भागीरथी भी थे और गंगा भी थे,वह भीम भी स्वयं प्रतिज्ञा थे, पथिक भी। डॉक्टर हेडगेवार कर्ता भी थे कर्म भी थे।
विजयादशमी के पावन पर्व पर नागपुर के मोहितो वाड़े में संघ कार्य की यह गंगोत्री 27 सितंबर 1925 को आरंभ की गई थी। जब यह संघ यज्ञ शुरू हुआ तो इसके केवल पांच यजमान ही थे और पुरोहित बने थे डॉक्टर हेडगेवार। इन सब ने आजीवन अपने देह का एक-एक बूंद खून उस यज्ञ की ज्वाला में होम दिया,दुनिया में किसी भी संगठन की स्थापना ऐसे अद्भुत ढंग से नहीं हुई। संघ स्थापना के दिन डॉक्टर हेडगेवार जी ने अपने संगठन का ना नामकरण ही किया ना कोई समारोह, उसका तब ना कोई कार्यालय था ना संविधान,ना कोई निश्चित कार्यक्रम था ना कोष ही, बस थोड़े से छोटे नवयुवकों के उर्वर हृदय में अपने विचार का बीज डाल दिया। जिस तरह लोक दृष्टि से अगोचर रहकर बीज भूमि से रस संचय कर अंकुर बनता है और फिर पौधा इस तरह संघ का रूप भी धीरे-धीरे तरह-तरह के अनुभवों के आधार पर विकसित होने लगा। डॉक्टर हेडगेवार जी ने अपनी मृत्यु के पूर्व 1940 में नागपुर में होने वाले संघ शिक्षा वर्ग में भारत के प्राय सभी प्रांतो का प्रतिनिधित्व देख कर सोत्साह कहा था कि " मैं आज अपने सामने हिंदू राष्ट्र की छोटी प्रतिमा ( लघु भारत )का रूप देख रहा हूं। 21 जून 1940 को डॉक्टर साहब देवलोक वास हो गए।आज सरसंघ चालक परम पूजनीय डॉक्टर केशव वली राम हेडगेवार का स्मरण इसलिए होता है,होता रहेगा क्योंकि संघ कार्य भगवान परशुराम की तरह चिरंजीवी है। डॉक्टर साहब अब तक संघ के आदर्श क्रियाशील सदस्यों के लिए ही नहीं समस्त हिंदू हृदय के प्राण प्रिय हैं और इस धरा पर जब तक हिंदू जीवित है तब तक आप अमर हैं।
'ध्येय की प्रतिमूर्ति जीवित,घूमती थी इस धरा पर।
धन्य वह युग धन्य भारत,पुत्र केशव सरिश पाकर।। "
डॉक्टर हेडगेवार जी के जन्म उत्सव पर उस महामानव को श्रद्धा सुमन अर्पित कर प्रणाम करता हूं।
लेखक/चिंतक इजी राजेंद्र पांडेय
सिरमौर