MP: बेटे लल्लू के नामांकन में दिन भर पैदल रहे पूर्व मंत्री दाऊ,संस्कार या फिर नया टोटका ... ? -

नामांकन में दिन भर पैदल रहे पूर्व मंत्री -
 
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MP: बेटे लल्लू के नामांकन में दिन भर पैदल रहे पूर्व मंत्री दाऊ,संस्कार या फिर नया टोटका ... ? -

उमरिया। बांधवगढ विधानसभा 89 से बेटे के नामांकन के दिन पहुंचे पूर्व केविनेट मंत्री ज्ञान सिंह शुक्रवार को दिन भर बिना जूते-चप्पल के ही रहे। इस दौरान क़ई बार लोगो ने कहा कि दाऊ जूते पहन लें, पर उन्होंने नही पहना।उनके अपने लोगो का मानना है कि नामांकन के दिन वो इस पावन धरती में जूते या चप्पल नही पहनते, इन बातों में कितनी सच्चाई है, ये तो वो ही जाने, पर इतना साफ है कि चुनावी बेला में अक्सर वो ऐसा कर जाते है, जो मध्यप्रदेश कि राजनीति मे बड़ा सवाल छोड़ जाती है। पूर्व में उन्होंने अपने चुनाव में कंधे में एक झोला रख आया करते थे जो आज तक अनबुझी पहेली बनी हुई है। जो जीतने के बाद ही उतारे थे, अब ये संस्कार है या जीत का टोटका … ये वही जाने, पर ये करिश्माई चीज़ें दूसरे सियासी दलों की धड़कने ज़रूर बढ़ाती है।

1977 में उतरे राजनीति में -
46 सालों के सियासी अनुभव के गुणी पूर्व मंत्री ज्ञान सिंह 1977 में राजनीति में उतरे और जनता पार्टी से टिकट लेकर जीत दर्ज की थी। यही से जनता पार्टी का उमरिया क्षेत्र में उदय हुआ था, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी। जिले के दोनो विधानसभा में वर्तमान दोनो विधायक इन्ही की सहमति से राजनीति में उतरे और लगातार विधायक बन रहे है।1994 में विधायक होते हुए ज्ञान सिंह को जब लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया, तो सीट खाली हुई, तभी ज्ञान सिंह की सहमति से उस समय की जनपद सदस्य मीना सिंह को प्रत्याशी बनाया गया और उन्होंने जीत दर्ज की।

दोनो विधायको में दाऊ की सहमति-
उमरिया जिले का संजोग ही कहा जा सकता है कि भाजपा के अजेय दुर्ग में दो से तीन बार से लगातार जीत दर्ज कर रहे शिवनारायण सिंह और मीना सिंह यानी दोनो विधायक ज्ञान सिंह की सहमति से ही शुरुवाती काल मे सियासी मैदान में उतरे थे,इसलिए संगठन भी इनका लोहा मानती है। कुशल रणनीतिकार और राजनीतिज्ञ ज्ञान सिंह विधायक और सांसद के क़ई चुनावों में हिस्सा लिए है, महज एक बार इन्हें शिकस्त मिली, बाकी हर बार अजेय इन्होंने जीत दर्ज की है। इनकी खास बात ये भी है कि ये शहडोल लोक सभा संसदीय सीट के साथ उमरिया जिले कि दोनो सीट से विधान सभा प्रत्याशी रहे, जो दोनो विधान सभा में हिस्सा लिए और जीत दर्ज की है,इसके अलावा 80 वर्षीय पूर्व मंत्री ज्ञान सिंह क़ई बार विधायक रहते हुए केबिनेट मंत्री,सांसद सहित अस्थाई विधानसभा अध्यक्ष जैसे प्रदेश के महत्वपूर्ण पदों का निर्वहन किया है।

दादू और दाऊ का अप्रत्यक्ष संघर्ष -
कांग्रेस के पूर्व विधायक मजबूत नेता एवम वर्तमान में जिला अध्यक्ष अजय सिंह के समर्थक उन्हें प्यार से दादू बोलते है, इधर भाजपा समर्थक ज्ञान सिंह को प्यार से दाऊ बोलते है। सियासी चुनाव में प्रत्याशी कोई भी हो पर संघर्ष कही न कही अप्रत्यक्ष रूप से दादू और दाऊ का होता है।दरअसल परिसीमन से पूर्व वर्ष 2003 में नोरोजाबाद सामान्य सीट से आदिवासी नेता ज्ञान सिंह (दाऊ) को भाजपा ने मैदान पर उतारा था, विरोधी दल कांग्रेस से अजय सिंह (दादु) मैदान पर थे, इस चुनाव में ज्ञान सिंह ने बाजी मारी थी, जिसके बाद से ही बाकी चुनावो में प्रमुख दलों में प्रत्याशी कोई भी हो,पर संघर्ष हमेशा अप्रत्यक्ष रूप से दादू और दाऊ का ही बना रहा। साभार