देश सुरक्षित और राष्ट्रवादी हाथों में है:नितिन मिश्रा

‘बिजनेस टुडे’ ने GDP वाले ग्राफ को डिलीट कर लिया है। उसके दम पर जो बड़े-बड़े अर्थशास्त्री पैदा हो गए थे, वो अब अनाथ हो चले हैं। आँखें खुलने पर पता चलता है कि भारत अभी भी दुनिया के सबसे ज्यादा विकास दर वाले देशों में से एक है। किसी देश के GDP डेटा की The post देश सुरक्षित और राष्ट्रवादी हाथों में है:नितिन मिश्रा first appeared on saharasamachar.com.
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देश सुरक्षित और राष्ट्रवादी हाथों में है:नितिन मिश्रा

‘बिजनेस टुडे’ ने GDP वाले ग्राफ को डिलीट कर लिया है। उसके दम पर जो बड़े-बड़े अर्थशास्त्री पैदा हो गए थे, वो अब अनाथ हो चले हैं। आँखें खुलने पर पता चलता है कि भारत अभी भी दुनिया के सबसे ज्यादा विकास दर वाले देशों में से एक है। किसी देश के GDP डेटा की इस Quarter से पिछले Quarter की तुलना कर दी गई और भारत की पिछले साल के इसी Quarter से तुलना कर दी गई, स्पष्ट है कि गिरावट ज्यादा देखने को मिलेगी। प्रपंचियों ने ग्राफ बनाया, मंदबुद्धियों ने ढोल पीटा और सरकार के अन्धविरोधियों ने बिना सोचे-समझे इसे लेकर हंगामा शुरू कर दिया।

मैं नितिन मिश्रा अर्थशास्त्री तो नहीं लेकिन जो सच में अर्थशास्त्र के ज्ञाता हैं, उनकी ही राय को आपके समक्ष रख रहा हूँ। मीडिया ने प्रचारित किया कि ये सबसे बड़ी गिरावट है, अर्थव्यवस्था ICU में है और मोदी सरकार फेल हो गई है। क्या इनको इतनी भी समझ नहीं है कि उत्पादन होता है, उसे खरीदने के लिए रुपए खर्च किए जाते हैं और कमाई बढ़ने के साथ ही कोई भी सेक्टर ऊँचाई चढ़ता है। भाई साहब, काम ही कहाँ हो रहा है कि कमाई होगी? स्कूल-कॉलेज बन्द हैं, फैक्ट्रियाँ बन्द हैं और माल के आवागमन की सुविधा बन्द है। कोई बहुत बड़ा गणित तो है नहीं ये समझना।

अगर उसी ग्राफ के आधार पर तुलना करें तो सिंगापुर की GDP -42.9% गिरी है, कनाडा की 38.7%, अमेरिका की 33% और जापान की 27.4% गिरी है। पूरा विश्व इससे जूझ रहा है और इसका सरकार के परफॉरमेंस से कोई लेनादेना नहीं है। इन सबके बावजूद भारत का कृषि सेक्टर आगे बढ़ रहा है, जो अच्छी बात है। अब कोई ये पूछ सकता है कि चीन की भारत जितनी क्यों नहीं गिरी? पहली बात, वहाँ लोकतंत्र न होने के कारण सरकार Iron Hand से फैसले लेती है। दूसरा, कोरोना से वहाँ की 5% जनसंख्या ही प्रभावित हुई। अर्थात, पूरे चीन में तो लॉकडाउन हुआ भी नहीं।

जबकि भारत में पूरा देश ठप्प है महीनों से। कारण है कि सरकार ने लोगों की जान को इकॉनमी से ज्यादा प्राथमिकता दी। हमारे पास कोई हेल्थकेयर सिस्टम नहीं था। आयुष्मान भारत से लेकर नए अस्पताल बनवाने तक, सरकार ने कोरोना से लड़ने में सारी ताकत झोंकी। हमारे सरकारी अस्पतालों में 70 साल में कितने वेंटिल्टर्स थे? 48,000. मोदी सरकार ने PM Cares से कुछ ही महीनों में 50,000 वेंटिल्टर्स बनवा कर अस्पतालों को दिए। क्या ये नहीं गिना जाएगा?

जनवरी 2020 तक कितने PPE किट बनाते थे हम? शून्य। जी हाँ, जीरो।

अब भारत में रोज 4.5 लाख PPE किट्स बनते हैं। हम दुनिया में इसका दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गए हैं। जो लोग पहले बोल रहे थे कि लॉकडाउन लगाओ, बाद में बोलने लगे कि हटाओ। लॉकडाउन नहीं होता और रोज हजारों मौतें होतीं, तब यही लोग बोल रहे होते की इकॉनमी ज्यादा जरूरी है या लोगों की जान। भारत मे कोरोना के फिलहाल 8.08 लाख सक्रिय मामले हैं। जिनमें से 44% महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में हैं। तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है। उन CMs से सवाल पूछे जाते हैं क्या? लेकिन जिसने काम किया, गाली उसे ही पड़ रही है।

जब GDP रिकॉर्ड हाई थी, तब यही लोग कह रहे थे कि आँकड़ों से गरीब का पेट थोड़े भरता है। जब डेटा सस्ता हुआ तो ये कह रहे थे कि गरीब को डाटा नहीं, आटा चाहिए। अब तो आटा भी मिल रहा है। 5 किलो गेहूँ और चावल के अलावा हर महीने 1 किलो चना भी गरीबों को दिया जा रहा है। छठ तक सब मुफ्त। सरकार ने गरीबों के भोजन पर ₹1.5 लाख करोड़ खर्चे। ये नहीं जोड़ा जाएगा?

अब गरीबों को खाना मिल रहा तो आँकड़े चाहिए। 20 करोड़ गरीबों के खाते में 31,000 करोड़ गए। 9 करोड़ किसानों के खाते में 18,000 करोड़ गए। ये भी तो आँकड़े हैं।

असल मे ये सब एक कुचक्र के तहत हो रहा है। पहले ये बोल रहे थे कि कोरोना कोई बड़ी बीमारी है ही नहीं, इसे तो CAA से ध्यान भटकाने के लिए लाया गया है। बाद में इन्होंने मजदूरों को भड़का कर पूरे देश मे Mayhem का माहौल बनाया। फिर छात्रों को भड़काने में लग गए। JEE की एक परीक्षा हो भी गई। कोई परेशानी नहीं आई। कोरोना के कारण सभी छात्र परेशान हैं। जब DU और BHU सहित कई बड़े संस्थान और अन्य प्राइवेट संस्थानों की परीक्षाओं में भीड़ जुट रही है तो सरकार क्यों पीछे हटे? हाँ, सरकार छात्रों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करे, ये माँग जायज है।

चीन के मुद्दे पे रोज चिल्लाने वाले अब चुप हैं क्योंकि भारत ने कई वो हिस्से भी वापस छीन लिए हैं, जो 1962 में नेहरू ने गँवा दिए थे। अब सब चुप हैं। राफेल पर हंगामा मचाया गया, जो अब शांत हो गया है। हर हंगामे के हश्र यही होना है। जो तुरन्त बहकावे में आ जाते हैं, उन्हें बाद में एहसास होता है कि वो गलत थे। अब नया मुद्दा आया है सरकारी नौकरी का। आया नहीं है बल्कि लाया गया है। जानबूझ कर इस माहौल में इन मुद्दे को छेड़ा गया है। इसका समर्थन कर रहे बड़े नेता Railways और Safety का स्पेलिंग भी गलत लिख रहे हैं।

भारत का सरकारी Workforce कुछ ज्यादा ही बड़ा है। इसमें अधिकतर अयोग्य लोग बैठे हुए हैं। एक-एक काम के लिए कई लोग हैं। ऐसे में सरकारी नौकरियों को कम कर के लघु व माध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना और प्राइवेट सेक्टर को नौकरियों के सृजन के लिए तैयार करना ही सिस्टम बदलने का उद्देश्य है। स्वाभाविक है कि सबको सरकारी नौकरी ही चाहिए। लेकिन, जहाँ एक ही फाइल पढ़ने के लिए 3 कर्मचारी बैठे हैं, वहाँ चौथा भी इसी काम के लिए चल जाए तो इससे सरकारी कामकाज धीमा होगा या तेज़? सरकार ने बड़े स्तर पर कइयों को जबरन रिटायर किया। छोटे लेवल पर ये मुश्किल है।

इसके बाद चला डिस्लाइक का खेल। पीएम मोदी के ‘मन की बात’ वाले वीडियोज को डिस्लाइक किया जाने लगा। पोल खुल गई। कुल डिस्लाइक्स में से 98% विदेश से आए थे, तुर्की जैसे कट्टर इस्लामी देशों से। 2% समर्थन पाकर हंगामा करना कोई इनसे सीखे। तुर्की में किसे JEE-NEET की परीक्षा देनी है?
बीच कोरोना आपदा में ये सब नौटंकी की जक रही है – इसका एक ही उद्देश्य है कि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैला कर ये दिखाना कि मोदी ठीक काम नहीं कर रहा।

यह लेखक के मूल विचार हैं कोई त्रुटि होने पर सहारा समाचार जिम्मेदार नहीं हैं।

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